राधे बिना श्याम मिले कैसे
राधे बिना श्याम मिले कैसे,
तुलसी बिना भोग लगे कैसे,
गंगा नहाई मै तो यमुना नहाई,
सरयू बिना पाप मिटे कैसे,
राधे बिना श्याम मिले कैसे,
बैकुंठ गई मैं अयोध्या गई थी,
वृंदावन श्याम मिले कैसे,
राधे बिना श्याम मिले कैसे,
मंदिर में ढूंढा गुरुदवरे में ढूंढा,
मेरे हृदय में दयानिधि मिले कैसे,
राधे बिना श्याम मिले कैसे,
हलवा बनाया मैंने पुरिया बनाई,
छपन भोग की थाली लगाई,
शालिग्राम बिना भोग लगे कैसे,
राधे बिना श्याम मिले कैसे,
श्रेणी : कृष्ण भजन
श्याम भजन | राधा बिना श्याम मिले कैसे तुलसा बिना भोग लगे कैसे | Shyam Bhajan | Simran Rathore
"राधे बिना श्याम मिले कैसे" एक अत्यंत मधुर और भावनात्मक श्याम भजन है, जो प्रेम, भक्ति और समर्पण की गहराई को दर्शाता है। इस भजन में भक्त की व्याकुलता और श्रद्धा झलकती है, जो यह बताती है कि श्रीकृष्ण के साक्षात्कार के लिए राधा की कृपा अनिवार्य है, ठीक वैसे ही जैसे तुलसी के बिना प्रभु को भोग अर्पित नहीं किया जा सकता।
भजन के शब्दों में आध्यात्मिकता की सुगंध है—"गंगा नहाई मै तो यमुना नहाई, सरयू बिना पाप मिटे कैसे", जो यह इंगित करता है कि पवित्र नदियों में स्नान करने के बाद भी वास्तविक मुक्ति तभी संभव है, जब ईश्वर की कृपा प्राप्त हो।
इसी तरह, "मंदिर में ढूंढा, गुरुद्वारे में ढूंढा, मेरे हृदय में दयानिधि मिले कैसे", यह पंक्तियाँ बताती हैं कि जब तक मन शुद्ध और प्रेम से भरा नहीं होगा, तब तक ईश्वर का सच्चा दर्शन संभव नहीं है।
"हलवा बनाया, मैंने पूरिया बनाई, छप्पन भोग की थाली लगाई", यह भाव बताता है कि भले ही हम कितनी भी पूजा-अर्चना कर लें, लेकिन जब तक श्रीहरि का प्रेम और भक्ति नहीं होगी, तब तक कोई भी भोग स्वीकार्य नहीं होता।
यह भजन सिर्फ एक रचना नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक संदेश है, जो हमें यह समझाता है कि राधा के बिना श्याम अधूरे हैं और भक्ति के बिना ईश्वर की प्राप्ति असंभव है। जय श्री श्याम!