श्री द्वारिकाधीश भगवान की कहानी ( ध्वारिकाधीश भगवान की कहानी ) - हिंदी में

द्वारकाधीश की कहानी



भगवान श्री द्वारिकाधीश (भगवान कृष्ण) की कई कहानियां हैं, जो उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती हैं। यहां एक प्रमुख कहानी प्रस्तुत की जाती है:

कृष्ण जी का जन्म वृंदावन में हुआ था। उनके जन्म के समय वहां अधर्मी कंस नामक राजा शासन कर रहे थे। कंस ने अपनी बहन देवकी का विवाह वासुदेव से करवाया था। वासुदेव और देवकी के पुत्र में से एक कंस को मारने वाला होने का वचन दिया था, क्योंकि एक ऋषि ने कहा था कि कंस की मृत्यु उसके ही हाथों से होगी।

कृष्ण का जन्म होते ही एक अद्भुत घटना घटी। जब उनकी माता देवकी को जब कंस की द्वारिका में जेल में बंद किया गया, तो देवकी को भगवान विष्णु का स्वरूप दिखाई दिया। उन्होंने देवकी को वचन दिया कि वह उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे और कंस को धरती पर से समाप्त करेंगे।
द्वारिकाधीश भगवान कृष्ण ने अपने बचपन में वृंदावन में अनेक लीलाएं दिखाईं। उन्होंने गोपियों के साथ रासलीला किया, मक्खन चुराया और नागराज कालिया को मूर्त तैरना सिखाया। उनकी बाल लीलाएं और नाटकीय कार्यक्रम लोगों को आकर्षित करती थीं।

युद्ध का समय आने पर, कंस ने वृंदावन को आक्रमण करने का फैसला किया। भगवान कृष्ण ने वृंदावन के निवासियों को सुरक्षा के लिए वाराणसी बुलाया और उन्होंने खुद द्वारिका नगरी में बसने का निर्णय लिया।

द्वारिका नगरी में रहते हुए, भगवान कृष्ण ने ब्रजभूमि में बसे अपने भक्तों की मदद करते रहे। उन्होंने गीता ज्ञान दिया और अर्जुन को महाभारत युद्ध में भगवान्वत्सलता और सत्य के मार्ग का उपदेश दिया।

द्वारिका नगरी में उनकी राजधानी थी, जो समृद्धि और खुशहाली से भरी हुई थी। उन्होंने अपनी पत्नी रुक्मिणी से विवाह किया था और उनके साथ अनेक पत्नियां भी थीं।

महाभारत के युद्ध के बाद, द्वारिका नगरी में संकट आने लगे और श्रीकृष्ण जी को ज्ञान मिला कि उनका अंत करीब है। एक दिन जब उन्होंने द्वारिका छोड़ने का निर्णय लिया, तो वहां महाप्रलय हुआ और द्वारिका नगरी समाप्त हो गई।

द्वारिकाधीश भगवान कृष्ण की कथाएं हिंदी साहित्य में बहुत प्रसिद्ध हैं और इनकी कथाएं भक्तों को आध्यात्मिक और मनोहारी बान्धती हैं। उनके जीवन की कई और कहानियां भी हैं, जो उनकी दिव्यता और दयालुता को प्रकट करती हैं।

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