हनुमान जी का इतिहास: पौराणिक कथाओं और महत्वपूर्ण तथ्यों का संग्रह

हनुमान जी का इतिहास



ज्योतिषीयों के सटीक गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म 58 हजार 112 वर्ष पहले त्रेतायुग के अन्तिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे भारत देश में आज के झारखण्ड राज्य के गुमला जिले के आंजन नाम के छोटे से पहाड़ी गाँव के एक गुफा में हुआ था।

इन्हें बजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि इनका शरीर एक वज्र की तरह है। वे पवन-पुत्र के रूप में जाने जाते हैं। वायु अथवा पवन (हवा के देवता) ने हनुमान को पालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

राम भक्त हनुमान का इतिहास भारतीय पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। हनुमान जी को वानर सेनापति, ब्रह्मचारी, रामभक्त, अद्वितीय भक्त, मारुतिनंदन, बजरंगबली आदि नामों से जाना जाता है। हनुमान जी के जीवन के कई महत्वपूर्ण कार्य और उनकी अनोखी शक्तियों के कई कथाएं हैं।

हनुमान जी का जन्म सुमित्रा और वायु देवता के पुत्र के रूप में अयोध्या में हुआ था। उनकी माता सुमित्रा जी का गर्भ सोने के फल से प्रभावित हुआ था, जिस कारण हनुमान जी को अस्त्रशस्त्रों और ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
हनुमान जी का इतिहास: पौराणिक कथाओं और महत्वपूर्ण तथ्यों का संग्रह
हनुमान जी का पहला महत्वपूर्ण कार्य श्री राम के द्वारा वनवास के समय हुआ। जब रावण ने श्री राम और सीता माता का हरण किया, तो हनुमान जी ने सीता माता का पता लगाने और उन्हें लंका से मुक्त करवाने के लिए अद्वितीय प्रयास किये। हनुमान जी ने अपनी भयंकर शक्ति और वानर सेना के सहायता से लंका तक पहुंचकर अशोक वाटिका में सीता माता को ढूंढा और उन्हें राम की शक्ति और प्रेम का प्रतीक दिखाया। इसके बाद हनुमान जी ने लंका को आग लगाई और रावण के सामर्थ्य को चुनौती दी।

रामायण में हनुमान जी की कई और कथाएं भी हैं, जैसे कि हनुमान जी का राम संबंधी रुद्रावतार, हनुमान जी का चीरहरण, हनुमान जी की दीक्षा, हनुमान जी का संयम आदि। ये कथाएं हनुमान जी की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाती हैं और उनकी अद्वितीय भक्ति और प्रेम को प्रकट करती हैं।

भारतीय साहित्य और संस्कृति में हनुमान जी का अत्यंत महत्व है। उन्हें मारुतिनंदन, बजरंगबली, अंजनीपुत्र, रामदूत आदि नामों से भी पुकारा जाता है। वे भगवान श्री राम के प्रिय भक्त हैं और उनकी सेवा और पूजा का बहुत महत्व है। हनुमान जी की भक्ति और प्रेम को देशभक्ति, वीरता, सामरिक योग्यता और निष्ठा का प्रतीक माना जाता है।

हनुमान के द्वारा सूर्य को फल समझना

एक बार की बात है, लंका के राजा रावण ने हनुमान जी को पकड़ लिया और उन्हें सबसे ऊँचा पहाड़ी पर ले जाकर खड़ा कर दिया। वहां सूर्यास्त हो रहा था और सूर्य ढलने वाला था।

रावण ने हनुमान जी से पूछा, "हे वानरवीर, यह सूर्य क्या है? और यह फल कैसे होता है?" हनुमान जी ने मुस्कराते हुए कहा, "महाराज, मैं तुम्हें सूर्य को फल के रूप में समझाऊंगा।"

फिर हनुमान जी ने अपनी बड़ी ताकत के साथ अपने हाथों में सूर्य को पकड़ लिया और उसे चढ़ाई पर उठा लिया। रावण चकित रह गए और उन्होंने पूछा, "हे हनुमान, यह कैसे हो सकता है? सूर्य तो इतना बड़ा है, और फल छोटा होता है।"

हनुमान जी ने कहा, "महाराज", यह फल जब मैं छोड़ूंगा तो सूर्य अपने स्वाभाविक स्थान पर लौट आएगा। सूर्य विशालकाय और दीप्तिमान होने के कारण वह फल छोटा दिख रहा है। अतः यह सूर्य को फल के रूप में समझा जा सकता है।"

यह कथा हमें यह शिक्षा देती है कि हमें विश्वास रखना चाहिए कि प्रत्येक वस्तु में दिव्यता हो सकती है और उसे समझने के लिए हमें उसे समर्पित होकर देखना चाहिए। हनुमान जी की भक्ति, त्याग, और शक्ति के माध्यम से वे सूर्य के गौण रूप को अभिव्यक्त कर सकते थे।

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