राधा गोविंद गीत | Radha Govind Geet | Ft. Akhileshwari Didi

राधा गोविंद गीत



राधा गोविंद गीत
राधे राधे गोविंद गोविंद राधे।
राधे राधे गोविंद गोविंद राधे।।

श्री गुरु चरणों में गोविंद राधे।
सिर को ही नहिं मन को भी झुका दे॥
                          श्री गुरु चरणों में गोविंद राधे।
                          तन मन धन अर्पण करवा दे॥
गुरु की कृपा बिनु गोविंद राधे।
कोटि साधन करु हरि कछु ना दे॥
                          गुरु जो प्रसन्न हो तो गोविंद राधे।
                          हरि हो प्रसन्न बिनु भक्ति बता दे॥
गुरु की शरण गहो गोविंद राधे।
गुरु की मुट्ठी में हरि हैं बता दे॥
                          गुरु यदि रूठ जाये गोविंद राधे।
                          कोटि करो भक्ति हरि अँगूठा दिखा दे॥
सारा विश्व दान करो गोविंद राधे।
तो भी गुरु ऋण ते ना उऋण करा दे॥
                          गुरु जो भी सेवा ले ले गोविंद राधे।
                          गर्व जनि करो आभार जना दे॥
गुरु ने जो दिया ज्ञान गोविंद राधे।
कोटि प्राणदान भी ना उऋण करा दे॥
                          गुरु पद सेवा करो गोविंद राधे।
                          गुरु पद सेवा प्रेम मेवा दिला दे॥
हरि की कृपा जो चह गोविंद राधे।
तन मन धन गुरु सेवा में लगा दे।।
                          तन मन धन धन्य गोविंद राधे।
                          जो हरि गुरु सेवा में लगा दे।।
हरि गुरु ही हैं मेरे गोविंद राधे।
ऐही नित सोचना उपासना बता दे।।
                          तेरे उपकारों का गोविंद राधे।
                          आभार माना नहिं मानना सिखा दे।।
कैसे रिझाऊँ तोहिं गोविंद राधे।
प्रेम से हूँ निर्धन धनी तो बना दे।।

पुस्तक : राधा गोविंद गीत
अध्याय : महापुरुष
पृष्ठ संख्या : 155
सर्वाधिकार सुरक्षित ©
जगद्गुरु कृपालु परिषत्

स्वर : सुश्री अखिलेश्वरी देवी
कवि : जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज



श्रेणी : कृष्ण भजन



राधा गोविंद गीत | Radha Govind Geet | Ft. Akhileshwari Didi

"राधे राधे गोविंद गोविंद राधे"—यह भजन भक्तिरस में डूबे हृदयों के लिए एक अद्भुत संगीतमय उपहार है, जिसे जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने लिखा है। यह भजन भक्त को यह सिखाता है कि केवल भगवान की भक्ति पर्याप्त नहीं है, बल्कि गुरु कृपा के बिना भगवत कृपा भी दुर्लभ है।

इस भजन का प्रत्येक शब्द श्रीगुरु की महिमा का बखान करता है। भक्तजन केवल सिर ही नहीं, बल्कि अपने मन को भी गुरुचरणों में समर्पित करें, क्योंकि गुरु के बिना भगवान को पाना असंभव है। गुरु ही हमें भगवान तक पहुँचने का मार्ग दिखाते हैं, और जब गुरु प्रसन्न होते हैं, तब भगवान स्वयं प्रसन्न होते हैं।

भजन में यह स्पष्ट कहा गया है कि यदि गुरु हमसे रूठ जाएँ, तो फिर चाहे हम कितनी भी भक्ति करें, भगवान हमें दर्शन नहीं देंगे। यहाँ तक कि सारा विश्व भी दान कर दिया जाए, तब भी गुरु के ऋण से मुक्त नहीं हुआ जा सकता। इसलिए, भक्ति में गर्व नहीं करना चाहिए, बल्कि इसे प्रेमपूर्वक गुरुचरणों में समर्पित कर देना चाहिए।

"हरि गुरु ही हैं मेरे गोविंद राधे" - इस वाणी में वह रहस्य समाहित है, जो प्रत्येक भक्त को समझना चाहिए। गुरु और भगवान में कोई भेद नहीं है, और जो भी हरि-कृपा चाहता है, उसे तन-मन-धन से गुरु सेवा में लग जाना चाहिए। यही वह पथ है, जो हमें सच्चे आनंद और भक्ति की पराकाष्ठा तक ले जाता है।

यह दिव्य भजन सुश्री अखिलेश्वरी देवी के मधुर स्वर में गाया गया है, जो इसकी भावनाओं को और भी अधिक गहराई प्रदान करता है। यह रचना न केवल भगवान राधा-कृष्ण की भक्ति का संदेश देती है, बल्कि गुरु - शरणागति के महत्व को भी दर्शाती है। भक्तों के हृदय में भक्ति, श्रद्धा और प्रेम को जाग्रत करने वाला यह भजन आध्यात्मिक यात्रा का एक अनमोल मार्गदर्शन है।

Harshit Jain

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