अबके फागुन बरसाने में
अब के फागुन बरसाने में, ऐसी धूम मचाएंगे,
सबको नाच नचाए जो, हम उसे संग रास रचाएंगे,
जिस रंग रंग दे सांवरिया, हम उसी रंग रंग जाएंगे,
सबको नाच नचाए जो, हम उसे संग रास रचाएंगे,
जैसे भंवरा हो मतवाला, झूमे फूलों कलियों में,
गोपियों पीछे कृष्ण कन्हैया, घूमे वृंदावन गलियों में,
संग कान्हा के वृंदावन में, हम भी उधम मचाएंगे,
सबको नाच नचाए जो, हम उसे संग रास रचाएंगे,
पकड़ के राधा रंग दे सांवरिया, ऐसा दृश्य सुहाना हो,
हाथ में लट्ठ लिए राधा हो, और आगे आगे कान्हा हो,
ऐसी अद्भुत लीला पर, हम तो बलिहारी जाएंगे,
सबको नाच नचाए जो, हम उसे संग रास रचाएंगे,
लगी जो लगाने रंग राधा, आगे से कन्हैया बोल पड़े,
ऐ राधा मेरा रंग काला, काले पर रंग न कोई चढ़े,
इठलाती मुस्काती राधा ने, फिर ऐसा रंग डाला,
और काले रंग वाले को, अपने प्रेम के रंग में रंग डाला,
और ऐसा डाला रंग गहरा, जो हर पल बढ़ता जाए है,
जितना छुड़ाना चाहे कान्हा, उतना ही चढ़ता जाए है,
एक मजे की बात है उत्तम, राजू तुमको बतलाता है,
अब जो भी चाहे रंग डालो, वो काला उसी रंग रंग जाता है।
बरसाने वाली से वही रंग, प्रेम का हम भी चाहेंगे,
सबको नाच नचाए जो, हम उसे संग रास रचाएंगे,
श्रेणी : कृष्ण भजन
"अबके फागुन बरसाने में | राधा कृष्ण भजन | AI-Generated Video | Raju Uttam | Bhajan2025"
होली का पर्व जब बरसाने में मनाया जाता है, तो केवल रंग ही नहीं, बल्कि प्रेम और भक्ति की वर्षा भी होती है। "अबके फागुन बरसाने में" भजन उसी दिव्य माहौल को जीवंत करता है, जब श्याम और राधा की लीला से पूरा ब्रजमंडल आनंद में डूब जाता है।
भजन की पहली पंक्तियाँ ही हमें उस उत्साह और उमंग से भर देती हैं—
"सबको नाच नचाए जो, हम उसे संग रास रचाएंगे", यानी जो प्रेम और भक्ति से झूमता है, वह स्वयं कृष्ण की लीला में शामिल हो जाता है।
जब गोपियाँ वृंदावन की गलियों में कृष्ण के संग नृत्य करती हैं, तो पूरा वातावरण भक्तिरस में डूब जाता है—
"जैसे भंवरा हो मतवाला, झूमे फूलों कलियों में, गोपियों पीछे कृष्ण कन्हैया, घूमे वृंदावन गलियों में"।
भजन की सबसे सुंदर झलक तब आती है जब राधा-कृष्ण की प्रेम भरी होली का वर्णन किया जाता है—
"पकड़ के राधा रंग दे सांवरिया, ऐसा दृश्य सुहाना हो, हाथ में लट्ठ लिए राधा हो, और आगे आगे कान्हा हो", यह दृश्य लट्ठमार होली का भव्य चित्रण करता है, जहां राधा और उनकी सखियाँ कृष्ण को प्रेम से रंगती हैं।
लेकिन कृष्ण का एक मज़ेदार तर्क भी भजन में आता है—
"ऐ राधा मेरा रंग काला, काले पर रंग न कोई चढ़े", परंतु प्रेम में डूबी राधा ने ऐसा रंग डाला, जो कृष्ण के हृदय तक बस गया।
भजन के अंतिम शब्द हमें यह सिखाते हैं कि सच्चा रंग प्रेम और भक्ति का होता है, जो केवल शरीर पर नहीं, बल्कि आत्मा पर भी चढ़ जाता है—
"अब जो भी चाहे रंग डालो, वो काला उसी रंग रंग जाता है।"
"अबके फागुन बरसाने में" भजन होली के रंगों में भक्ति की खुशबू घोल देता है, जो हर कृष्ण प्रेमी को वृंदावन की गलियों में रास रचाने के लिए बुलाता है।