तेरी मुरली की मैं हूँ गुलाम, मेरे अलबेले श्याम
तेरी मुरली की मैं हूँ गुलाम, मेरे अलबेले श्याम ।
अलबेले श्याम मेरे मतवाले श्याम ॥
घर बार छोड़ा सब तेरी लगन में,
बाँवरी भई डोलूं ब्रिज की गलिन में ।
मेरे स्वांसो की माला तेरे नाम, मेरे अलबेले श्याम ॥
सांवरे सलोने यही विनती हमारी,
करदो कृपा मैं हूँ दासी तुम्हारी ।
तेरी सेवा करूँ आठों याम, मेरे अलबेले श्याम ॥
जब से लड़ी निगोड़ी तेरे संग अखियाँ,
चैन नहीं, दिन मैं काटूं रो रो के रतियाँ ।
तूने कैसा दिया यह इनाम, मेरे अलबेले श्याम ॥
आऊँगी मिलन को तुमसे कर के बहाने,
सांस रूठे, जेठानी मारे सो सो ताने ।
हूँ घर घर में मैं तो बदनाम, मेरे अलबेले श्याम ॥
श्रेणी : कृष्ण भजन
तेरी मुरली की मैं हूँ ग़ुलाम, मेरे अलबेले श्याम | Nikunj Kamra | Mere Albele Shyam | Bhav Pravah
यह भजन "तेरी मुरली की मैं हूँ गुलाम, मेरे अलबेले श्याम" प्रेम और भक्ति का गहरा प्रतीक है। इसमें एक भक्त अपनी आत्मा की पुकार व्यक्त करता है, जो अपने श्याम सुंदर की मुरली से इतना प्रभावित है कि उसने अपना घर-बार त्याग दिया है। यह भजन ब्रज की गलियों, राधा के समर्पण, और उस विरह की पीड़ा को व्यक्त करता है जो हर सच्चा प्रेमी अपने प्रभु से बिछुड़ने पर अनुभव करता है। भजन की हर पंक्ति में एक सच्ची भक्त की पुकार और समर्पण झलकता है। यह रचना सुनने वाले के मन को प्रभु की ओर आकर्षित करती है और उसमें भक्ति की लौ जला देती है। इस भजन की रचना जिस किसी ने भी की है, उसने बहुत ही भावपूर्ण और सुंदर ढंग से श्री श्याम सुंदर के प्रति प्रेम व समर्पण को व्यक्त किया है। यह भजन हर उस भक्त के हृदय में गूंजता है जो अपने आराध्य से एक आत्मिक संबंध जोड़ना चाहता है।