सांवरिया सेठ दे दे
सांवरिया सेठ दे दे,
मंडपिया रा मालिक दे दे,
थारे भरियो रे भंडार,
टोटो ना पड़े रे,
सांवरिया सेठ....
कठे रे जाग्यो ने,
कठे उपनियो रे.. सांवरिया,
कुण रे लड़ाया थारा लाड रे,
राधा का रसिया के दे,
थारे भरियो रे भंडार,
टोटो ना पड़े रे,
सांवरिया सेठ....
मथुरा जाग्यो ने,
गोकुल उपनियो रे.. सांवरिया,
यसोदा लड़ाया माने लाड रे,
नन्द जी की गोदिया खेल्यो,
थारे भरियो रे भंडार,
टोटो ना पड़े रे,
सांवरिया सेठ....
मारे खाबा ने,
कोने आलडी रे.. सांवरिया,
आप तो आरोगो छप्पन भोग रे,
मने एक निवालो देदो,
थारे भरियो रे भंडार,
टोटो ना पड़े रे,
सांवरिया सेठ....
मारे रेबा ने,
कोने झुपड़ी रे.. सांवरिया,
आप तो बिराजिया महला मायने,
मने एक ओवरो देदो,
थारे भरियो रे भंडार,
टोटो ना पड़े रे,
सांवरिया सेठ....
कस्या सेठा ने जावा,
जांचबा रे.. सांवरिया,
थारे तो भरिया रे भंडार,
मने एक रुपियो देदे,
थारे भरियो रे भंडार,
टोटो ना पड़े रे,
सांवरिया सेठ....
श्रेणी : कृष्ण भजन
"सांवरिया सेठ दे दे" एक अत्यंत भावप्रधान और लोकभाषा में रचा गया कृष्ण भजन है, जो भगवान श्रीकृष्ण से एक सरल, भावनात्मक और विनम्र याचना की तरह प्रस्तुत होता है। यह भजन केवल भक्ति नहीं, बल्कि गहरी श्रद्धा, भोलेपन और सादगी से भरा हुआ है, जिसमें एक भक्त अपने ठाकुर से कुछ मांगते हुए, बार-बार यही कहता है — "थारे भरियो रे भंडार, टोटो ना पड़े रे..."
यह पंक्ति भजन की आत्मा है, जो यह दर्शाती है कि भगवान के खजाने असीमित हैं, वे सच्चे सेठ हैं, और उनके देने से कभी कोई कमी नहीं आती। भक्त भगवान से मांग रहा है – कभी एक निवाला, कभी एक ओढ़नी, कभी एक रुपया — लेकिन वह मांग केवल सांसारिक नहीं है, उसमें प्रेम और सच्ची भक्ति की मिठास है।
भजन की हर पंक्ति में कृष्ण लीला की झलक भी मिलती है — "मथुरा जाग्यो ने, गोकुल उपनियो रे...", "यशोदा लड़ाया माने लाड रे...", जो श्रोताओं को वृंदावन और गोकुल की गलियों में ले जाती है, जहाँ कृष्ण का बचपन, उनका लाड-प्यार और उनका स्नेह भरा व्यवहार दिखाई देता है।
यह रचना हमें यह भी सिखाती है कि ईश्वर से मांगने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए, क्योंकि वह पालक है, सेठ है, और दयालु भी। जब भक्त पूरे समर्पण के साथ माँगता है, तो उसकी माँग भी भजन बन जाती है।
"सांवरिया सेठ दे दे" भजन केवल शब्दों का नहीं, एक भावनात्मक संवाद है, जो श्रीकृष्ण की दयालुता, करुणा और समृद्धता को सरल शब्दों में व्यक्त करता है। इसकी रचना शैली, राजस्थान और ब्रज की लोकभाषा में होने के कारण और भी प्रभावशाली बन जाती है।
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