जाये बैठे कौशल्या जी की गोद
जाये बैठे कौशल्या जी की गोद,
राम चंद्र दूल्हा बने.....
शीश बरने के सेहरा सोवे,
कान बरने के मोती सोहे,
याकी लड़ियो पे नाच रहे मोर,
राम चंद्र दूल्हा बने,
जाये बैठे कौशल्या जी की गोद,
राम चंद्र दूल्हा बने.....
गले बन्ने के तोडा सोवे,
हाथ बन्ने के कंगन सोवे,
याकी मेहँदी में नाच रहे मोर,
राम चंद्र दूल्हा बने,
जाये बैठे कौशल्या जी की गोद,
राम चंद्र दूल्हा बने.....
अंग बन्ने के जामा सोवे,
पैर बन्ना के जूते सोवे,
याके पटके पे नाच रहे मोर,
राम चंद्र दूल्हा बने,
जाये बैठे कौशल्या जी गोद,
राम चंद्र दूल्हा बने....
संग बन्ने के भाइयो की जोड़ी,
याकी महफ़िल में नाच रहे मोर,
राम चंद्र दूल्हा बने,
जाये बैठे कौशल्या जी गोद,
राम चंद्र दूल्हा बने....
श्रेणी : राम भजन

यह भजन “जाये बैठे कौशल्या जी की गोद, राम चंद्र दूल्हा बने” एक अत्यंत भावविभोर करने वाली रचना है, जो भगवान श्रीराम के विवाह की अलौकिक झांकी को शब्दों के माध्यम से जीवंत करती है। इस भजन में बालक राम नहीं, बल्कि वह दूल्हा बने श्रीराम हैं, जो अपनी माता कौशल्या की गोद में विराजमान हैं — यह दृश्य भक्तों के हृदय को भक्ति, प्रेम और आनंद से भर देता है।
भजन की पंक्तियाँ जैसे "शीश बरने के सेहरा सोवे", "कान बरने के मोती सोहे", और "याकी लड़ियो पे नाच रहे मोर", श्रीराम के दिव्य दूल्हा स्वरूप का अत्यंत सुंदर चित्रण करती हैं। यह केवल श्रृंगार का वर्णन नहीं है, बल्कि एक दिव्य भाव है — जैसे स्वयं सृष्टि उनके विवाह की शोभा में मग्न हो गई हो। मोरों का नृत्य प्रतीक है उस उल्लास और उमंग का, जो भगवान राम के विवाह की पावन बेला में प्रकृति भी अनुभव कर रही है।
इस भजन में रचनाकार ने श्रीराम के विभिन्न अंगों के श्रृंगार — सिर का सेहरा, गले का तोड़ा, हाथों के कंगन, पैरों के जूते, और पटका — को अत्यंत कोमल भावों और भक्तिपूर्ण शैली में सजाया है। साथ ही, भाइयों की जोड़ी और पूरी महफ़िल का उल्लास इस भजन को एक सामूहिक भक्ति का अनुभव बना देता है।
यह रचना न केवल भगवान श्रीराम के विवाह का श्रृंगारिक वर्णन करती है, बल्कि भक्तों के हृदय में प्रभु के प्रति अनुराग और भक्ति की लहरें भी उत्पन्न करती है। यह भजन ऐसा प्रतीत होता है मानो किसी भक्त की आंखों के सामने वह सम्पूर्ण दिव्य विवाह उत्सव साकार हो गया हो।