राधे मेरी दूर कैसे मैं दर्शन पाऊं
राधे मेरी दूर कैसे मैं दर्शन पाऊं,
पाऊं मैं दर्शन पाऊं मैं पाऊं,
राधे मेरी दूर कैसे मैं दर्शन पाऊं.....
पाओ में पड़ गए छाले,
जान के लाले,
मै हूं मजबूर कैसे मै दर्शन पाऊं,
राधे मेरी दूर कैसे मैं दर्शन पाऊं,
राधे मेरी दूर कैसे मैं दर्शन पाऊ....
मेरा खुशी रहे घरवाला प्रियतम प्यारा,
रहे अमर सिंदूर कैसे मैं दर्शन पाऊं,
राधे मेरी दूर कैसे मैं दर्शन पाऊं,
राधे मेरी दूर कैसे मैं दर्शन पाऊं....
मेरी दे गोदी में छैया राधिका मैया,
करू पूरे अरमान कैसे मैं दर्शन पाऊं,
राधे मेरी दूर कैसे में दर्शन पाऊं,
पाउ मै दर्शन पाऊं मै दर्शन पाऊं,
राधे मेरी दूर कैसे मैं दर्शन पाऊं....
श्रेणी : कृष्ण भजन
यह भजन "राधे मेरी दूर कैसे मैं दर्शन पाऊं" एक अत्यंत भावुक और भक्तिमय रचना है, जिसमें एक राधा-प्रेमी या कृष्ण-भक्त अपनी तीव्र भक्ति और दर्शन की लालसा को अभिव्यक्त करता है। इस भजन के माध्यम से भक्त अपने हृदय की पीड़ा और तड़प को व्यक्त करता है कि वह राधे (राधा रानी) से मिलने को कितना व्याकुल है, लेकिन दूरी, जीवन की कठिनाइयों और मजबूरियों के कारण वह उनके दर्शन नहीं कर पा रहा है।
भजन में भाव यह है कि भक्त के पैरों में छाले पड़ गए हैं, जान पर बन आई है, फिर भी वह राधा रानी के दर्शन की कामना लिए चल रहा है। वह यह भी कहता है कि उसका प्रियतम परिवार में सुखी रहे, सिंदूर अमर रहे, लेकिन उसका मन राधा के दर्शन के लिए बेचैन है। अंत में वह राधिका मैया से विनती करता है कि वह उसे अपनी गोदी में जगह दें और उसके सारे अधूरे अरमान पूरे करें।
यह भजन न केवल भक्त की करुणा को दर्शाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि सच्ची भक्ति में कितना समर्पण, कितना प्रेम और कितनी गहराई होती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह रचना किसी अनुभवी भावुक रचनाकार द्वारा लिखी गई है, जिसने कृष्ण और राधा के प्रेम को अपने शब्दों में बड़ी सुंदरता से उकेरा है।