ओ मईया तैने का ठानी मन में
ओ मईया तैने का ठानी मन में,
राम-सिया भेज दइ री वन में -२
हाय री तैने का ठानी मन में,
राम-सिया भेज दइ री वन में -२
यधपि भरत तेरो ही जायो,
तेरी करनी देख लज्जायो,
अपनों पद तैने आप गँवायो
भरत की नजरन में,
राम-सिया भेज दइ री वन में,
हठीली तैने का ठानी मन में,
राम-सिया भेज दइ री वन में |
महल छोड़ वहाँ नहीं’ रे मड़ैया,
सिया सुकुमारी,संग दोउ भईया,
काहू वृक्ष तर भीजत होंगे,
तीरो मेहन में,
राम-सिया भेज दइ री वन में,
दीवानी तैने का ठानी मन में,
राम-सिया भेज दइ री वन में -२
कौशल्या की छिन गयी वाणी,
रोय ना सकी उर्मिला दीवानी,
कैकेयी तू बस एक ही रानी
रह गयी महलन में,
राम-सिया भेज दइ री वन में,
दीवानी तैने का ठानी मन में,
राम-सिया भेज दइ री वन में -२
श्रेणी : दुर्गा भजन
ओ मईया तैने का ठानी मन में
इस भजन में राम वनवास की पीड़ा और कैकेयी के कठोर निर्णय का मार्मिक चित्रण किया गया है। भजन के शब्दों में माता सीता, श्रीराम और लक्ष्मण के वन जाने की वेदना छिपी है। महल का सुख छोड़कर वे जंगल की कठिनाइयों को सहन करते हैं।
भरत की निःस्वार्थ भक्ति, कौशल्या की मौन वेदना और उर्मिला के आंसू भजन के हर शब्द में झलकते हैं। कैकेयी के निर्णय ने केवल राम और सीता को ही नहीं, बल्कि अयोध्या के हर जन-जन को दुःख में डुबो दिया।
राम और सीता की यह यात्रा हमें त्याग, कर्तव्य और सहनशीलता का संदेश देती है। इस भजन के माध्यम से भक्ति और करूणा की गहराई को महसूस किया जा सकता है।