Navratri 4th Day: नवरात्रि के चौथे दिन - माँ चंद्रघंटा की आरती, मंत्र, व्रत कथा

नवरात्रि 2024: चौथे दिन की पूजा – मां चंद्रघंटा का स्वरूप, आरती, व्रत कथा और मंत्र

माँ चंद्रघंटा
नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा

नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा का विशेष महत्व है। ‘कुष्मांडा’ शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसका अर्थ कुम्हड़ा यानी पेठा की बलि देना है। दुर्गा सप्तशती में देवी कूष्मांडा को अष्टभुजा धारी बताया गया है, इसीलिए इन्हें देवी अष्टभुजा भी कहा जाता है। मान्यता है कि इनकी पूजा करने से सभी कष्ट, रोग, शोक और संतापों का नाश होता है। शास्त्रों में बताया गया है कि जब सृष्टि का निर्माण नहीं हुआ था और चारों ओर अंधकार था, तब देवी कूष्मांडा के रूप में ब्रह्मांड का जन्म हुआ। आइए, जानते हैं मां कूष्मांडा के स्वरूप, पूजा विधि, भोग और मंत्रों के बारे में।

मां कूष्मांडा का स्वरूप


देवी भागवत पुराण के अनुसार मां कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं। उनके सात हाथों में कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा सुशोभित हैं, जबकि आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को प्रदान करने वाली जप माला धारण की हुई है।

भोग:

मां को मालपुए का भोग अर्पित करना चाहिए और इसके बाद इसे प्रसाद रूप में सभी भक्तों में वितरित करना चाहिए। ऐसा करने से सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और व्यक्ति को रोग और कष्टों से मुक्ति मिलती है।

मां कूष्मांडा का ध्यान मंत्र:

माँ चंद्रघंटा
Maa kushmanda devi Aarti In Hindi

वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम्।
कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥


मां कूष्मांडा की स्तुति मंत्र:

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥


प्रार्थना:

सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥


बीज मंत्र:

ऐं ह्री देव्यै नमः।

मां कूष्मांडा की आरती के दौरान भक्त इस प्रकार से प्रार्थना करते हैं:

कूष्मांडा जय जग सुखदानी, मुझ पर दया करो महारानी।
पिगंला ज्वालामुखी निराली, शाकंबरी मां भोली भाली।
लाखों नाम निराले तेरे, भक्त कई मतवाले तेरे।
भीमा पर्वत पर है डेरा, स्वीकारो प्रणाम ये मेरा।
सबकी सुनती हो जगदम्बे, सुख पहुंचती हो मां अम्बे।
तेरे दर्शन का मैं प्यासा, पूर्ण कर दो मेरी आशा।
मां के मन में ममता भारी, क्यों ना सुनेगी अरज हमारी।
तेरे दर पर किया है डेरा, दूर करो मां संकट मेरा।
मेरे कारज पूरे कर दो, मेरे तुम भंडारे भर दो।
तेरा दास तुझे ही ध्याए, भक्त तेरे दर शीश झुकाए।


मां कूष्मांडा की पूजा करने से समस्त संकटों का नाश होता है और भक्त को जीवन में सफलता प्राप्त होती है।

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