वृन्दावन जाउंगी सखी, वृन्दावन जाउंगी (vrindavan jaungi sakhi - vrindavan jaungi)

वृन्दावन जाउंगी सखी



वृन्दावन जाउंगी सखी, वृन्दावन जाउंगी,
मेरे उठे विरह की पीर, सखी वृन्दावन जाउंगी,
वृन्दावन जाउंगी सखी, वृन्दावन जाउंगी,
मुरली बाजे यमुना तीर, सखी वृन्दावन जाउंगी,

श्याम सलोनी सुरत पे दीवानी, हो गई,
अब कैसे धारू धीर सखी वृंदावन जाऊंगी,
वृन्दावन जाउंगी सखी, वृन्दावन जाउंगी,
मेरे उठे विरह की पीर, सखी वृन्दावन जाउंगी,

छोड़ दिया मैंने भोजन पानी, श्याम की याद में,
मेरे नैनन बरसे नीर, सखी वृन्दावन जाउंगी,
वृन्दावन जाउंगी सखी, वृन्दावन जाउंगी,
मेरे उठे विरह की पीर, सखी वृन्दावन जाउंगी,

इस दुनिया के रिश्ते नाते,सब ही तोड़ दिए,
तुझे कैसे दिखाऊं दिल चिर,सखी वृन्दावन जाउंगी,
वृन्दावन जाउंगी सखी ,वृन्दावन जाउंगी,
मेरे उठे विरह में पीर,सखी वृन्दावन जाउंगी,

नैन लड़े मेरे गिरधरी से,बावरी हो गई,
दुनिया से हो गई अंजान ,सखी वृन्दावन जाउंगी,
वृन्दावन जाउंगी सखी ,वृन्दावन जाउंगी,
मेरे उठे विरह की पीर,सखी वृन्दावन जाउंगी,



श्रेणी : कृष्ण भजन



Karaoke | Mere Uthe Virah Ki Peer Sing Along ! | वृंदावन जाऊंगी सखी | Karaoke Bhajan with Lyrics

"वृन्दावन जाउंगी सखी" एक अत्यंत मार्मिक और हृदयस्पर्शी कृष्ण भजन है, जो विरह की पीड़ा और राधा जैसे प्रेम की उत्कंठा को दर्शाता है। यह भजन किसी साधारण गीत की तरह नहीं, बल्कि आत्मा की उस पुकार की तरह है जो अपने प्रियतम के दर्शन के लिए तड़प रही है। "मेरे उठे विरह की पीर, सखी वृन्दावन जाउंगी," जैसी पंक्तियाँ सुनकर लगता है जैसे किसी गोपी की व्यथा स्वयं शब्दों में ढल गई हो।

भजन में बार-बार दोहराया गया वृन्दावन का नाम न केवल एक स्थान को दर्शाता है, बल्कि वह प्रतीक बन जाता है उस पवित्र मिलन का, जहाँ आत्मा अपने परमात्मा से मिलना चाहती है। "मुरली बाजे यमुना तीर," पंक्ति जैसे ही गूंजती है, श्रोता की कल्पना में कृष्ण का वह रसमय रूप तैरने लगता है जो यमुना किनारे बांसुरी बजा रहे हैं और राधा अथवा कोई गोपी उनके प्रेम में डूबी हुई है।

भजन में "छोड़ दिया मैंने भोजन पानी," और "इस दुनिया के रिश्ते नाते, सब ही तोड़ दिए," जैसे भाव इस प्रेम को सांसारिक प्रेम से ऊपर उठाकर एक आत्मिक भक्ति में बदल देते हैं। यह भजन उन सभी के लिए विशेष है जो कृष्ण को केवल भगवान नहीं, बल्कि अपने जीवनसाथी, प्रेमी, मित्र और मार्गदर्शक के रूप में देखते हैं।

"वृन्दावन जाउंगी सखी" न केवल स्वर और शब्दों का सुंदर मेल है, बल्कि यह एक भक्त की व्याकुलता, समर्पण और आध्यात्मिक प्रेम का जीवंत उदाहरण है। जो भी इसे सुनता है, वह कुछ क्षणों के लिए संसार से कटकर वृन्दावन की उस पावन भूमि में पहुँच जाता है, जहाँ केवल कृष्ण और उनका प्रेम बसता है।

Harshit Jain

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