क्या लिखूं गुरु के बारे में लिखूं कम है, kya likhu guru ke bare mein

क्या लिखूं गुरु के बारे में जितना लिखूं कम है



( तर्ज - बाबुल का ये घर )

सांवरे से मिलने का सत्संग ही बहाना,

गुरु कृपा से मैंने मानव तन पाया है,
उनके ही चरणों में मैंने शीश झुकाया है,

गुरु की महिमा तो भगवान ने भी मानी है,
मिली शिक्षा जहां वो गुरु वरदानी है,
चरण रज से उनके मैंने ज्ञान पाया है,

उनके ही चरणों में मैंने शीश झुकाया है...

प्रीत तुम्हीं मेरी विश्वास तुम ही मेरा,
साथ ना ये जग दे मुझे साथ मिला तेरा,
ध्यान रहे गुरु का मैंने नाम तुमसे पाया है,

उनके ही चरणों में मैंने शीश झुकाया है...

मन की ये बाती हो और पूजा करु तेरी,
लकी के जीवन में गुरुवाणी रहे तेरी,
दया से तुम्हारी गुरु मेरा काम बन आया है,

उनके ही चरणों में मैंने शीश झुकाया है...

lyrics - lucky Shukla



श्रेणी : गुरुदेव भजन
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"क्या लिखूं गुरु के बारे में, जितना लिखूं कम है" – यह भजन सच्चे गुरु के चरणों में समर्पित एक अत्यंत भावुक और श्रद्धाभाव से भरा हुआ गीत है। इसे लकी शुक्ला जी ने लिखा है और इसकी तर्ज लोकप्रिय फिल्मी गीत "बाबुल का ये घर" से ली गई है।

इस भजन में गुरु की महिमा का सुंदर और मार्मिक वर्णन किया गया है। शुरुआत होती है उस एक सच्चाई से, कि सांवरे से मिलने का सत्संग ही बहाना है — यानी ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग गुरु ही दिखाते हैं। भक्त स्वीकार करता है कि उसे यह दुर्लभ मानव जन्म भी गुरु की कृपा से प्राप्त हुआ है और उसने जीवन की सार्थकता तभी पाई जब उसने गुरु के चरणों में शीश झुकाया।

भजन में यह भी कहा गया है कि गुरु की महिमा तो भगवान ने भी मानी है, अर्थात गुरु का स्थान स्वयं ईश्वर से भी ऊँचा माना गया है। जहां से शिक्षा मिली, वह गुरु जीवन को दिशा देने वाला वरदानी है। उनकी चरण रज से ही भक्त को सच्चा ज्ञान मिला है।

यह गीत गुरु और शिष्य के रिश्ते की उस गहराई को छूता है, जहां भक्त कहता है कि प्रीत तुम्हीं मेरी, विश्वास तुम ही मेरा, यानी जीवन की हर डोर गुरु के हाथ में है। यह दुनिया साथ दे या ना दे, लेकिन गुरु ने सदा साथ निभाया है।

भजन का भाव इतना सुंदर है कि अंत में शिष्य प्रार्थना करता है कि उसका जीवन सदा गुरुवाणी से प्रकाशित रहे, और गुरु की कृपा से उसका हर काम सफल होता रहे।

इस भजन में शब्दों से अधिक भावनाएं हैं, और यही इसे विशेष बनाता है। गुरु के लिए जितना भी लिखा जाए, वह कम ही होगा — और यही इस भजन का सार है। यह श्रद्धालु हृदय से निकली एक सच्ची वाणी है, जो हर गुरु-भक्त को भाव-विभोर कर देती है।

Harshit Jain

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