मैं तो आता रहा तेरे दर पे सदा
मैं तो आता रहा तेरे दर पे सदा,
मैया तुझको बूलाने को,
आओ गई कब भला मेरे घर पे बता,
घर को मंदिर बनाने को,
मैं तो आता रहा तेरे दर पे सदा,
नंगे पेरो से चल चल के माँ मैं तेरे दरबार पे हर बार आया ,
शाले पड़ जाये पैरो में फिर भी दर्द सेह सेह के भी मुस्काया,
तू ही भूले मुझे मैं न भूलू तुझे चाहे भलु ज़माने को,
मैं तो आता रहा तेरे दर पे सदा,
तेरी मूरत तो हर बार देखि,
अपनी सूरत तो आके दिखाना,
भोग तेरा लगाया तेरा सदा माँ आके घर पे तू खुद भोग खाना,
मैं खिलाऊ तुझे तू खिलाये मुझे,
ऐसा जलवा दिखाने को,
मैं तो आता रहा तेरे दर पे सदा,
मन मैंने के मैं हु भिखारी तीनो लोको की तुम हो हो दाता,
दीन से क्या निभाती नहीं हो माँ बेटे का है जो ये नाता,
मन कंगाल हु पर तेरा लाल हु,
आजा इतना बताने को,
मैं तो आता रहा तेरे दर पे सदा,
राह देखु गा मैं माता रानी जब तलक सांस मेरी चले गई,
जो अगर तू ना आई भवानी दुनिया क्या क्या ना जाने कहे गी,
पूरी कर आस को आँखों की पास को,
आंबे आजा भुजाने को.
मैं तो आता रहा तेरे दर पे सदा,
जो समज तू मुझे लाल अपन फिर मेरा घर क्या तेरा नहीं है,
दूर कितना है तेरे लिए माँ,
फिर क्यों लगता माँ फेरा नहीं है,
मैं तो मजबूर हु रहता मैं दूर हु,
फिर भी आउ मनाने को.
मैं तो आता रहा तेरे दर पे सदा,
श्रेणी : दुर्गा भजन
Main to aata raha tere dar pe shada maiya tujhko bulane ko aaoge kab bhala mere ghar ko mandir banan
यह दुर्गा भजन माता रानी के प्रति एक सच्चे भक्त की गहरी पीड़ा, प्रेम और अटूट विश्वास को व्यक्त करता है। भजन में भक्त बताता है कि वह हर बार नंगे पाँव, कष्ट सहकर भी माता के दर पर आता रहा, केवल इस आशा में कि एक दिन मैया स्वयं उसके घर आकर उसे मंदिर बना देंगी। इसमें माँ–बेटे के पवित्र रिश्ते, त्याग, प्रतीक्षा और निश्छल भक्ति का अत्यंत भावुक चित्रण है। भक्त खुद को भिखारी मानते हुए भी माँ का लाल कहकर पुकारता है और संसार की परवाह किए बिना माता के आगमन की राह देखता रहता है। यह भजन सुनने वाले के हृदय को भाव-विभोर कर देता है और सिखाता है कि सच्ची भक्ति में शिकायत नहीं, केवल विश्वास और प्रेम होता है।