नी मैनू संवारा सलोना पसंद आ गया
नी मैनू संवारा सलोना पसंद आ गया ।
पसंद आ गया, मेरे मन को भा गया ॥
काली कमली बांकी चितवन,
वा पे वारूँ मैं तो तन मन,
सुनरी सखी वो मेरे मन को भा गया ।
नी मैनू संवारा सलोना पसंद आ गया ॥
मोर मुकुट और मुरली वारो,
तिरछी तिरछी चितवन वारो,
ब्रिज का वो ग्वाला, मेरा मन चुरा गया ।
नी मैनू संवारा सलोना पसंद आ गया ॥
जब कहना की मुरली बाजे,
पतझड़ भी सावन सा लागे,
मुरली की धुन पे सब को नचा गया ।
नी मैनू संवारा सलोना पसंद आ गया ॥
जब कहना मेरा होरी खेले,
ब्रिज गोपीन के गूंगट खोले,
अपनी अदाओं पे सब को फस गया ।
नी मैनू संवारा सलोना पसंद आ गया ॥
श्रेणी : कृष्ण भजन
नी मैनू संवारा सलोना पसंद आ गया ni mainu sanwra salona pasand aa gaya
"नी मैनू संवारा सलोना पसंद आ गया" — यह भजन एक ऐसी प्रेममयी रचना है जो राधा रानी जैसी किसी सखी की जुबां से निकली प्रतीत होती है, जो अपने प्रियतम श्याम सुंदर के सौंदर्य, शील और अदाओं पर मोहित होकर अपने भाव व्यक्त कर रही है। इसमें प्रेम है, भक्ति है, और ह्रदय की वो अनुभूति है जो केवल ब्रज की गलियों में ही पाई जाती है।
जब वह कहती है — "नी मैनू संवारा सलोना पसंद आ गया," तो यह एक सजीव चित्र खींचता है उस क्षण का, जब पहली बार किसी ने अपने आराध्य श्रीकृष्ण को देखा हो। उनका रंग, रूप, मुस्कान और चंचलता एक ही पल में हृदय को भा गई — जैसे आत्मा को उसका खोया हुआ हिस्सा मिल गया हो।
"काली कमली, बांकी चितवन, वा पे वारूं मैं तो तन मन" — यह पंक्ति श्याम के रूप की महिमा का गुणगान करती है। उनकी नज़रें, उनके वस्त्र, उनकी चाल — सब कुछ ऐसा है कि तन-मन सब अर्पित करने को जी चाहता है। यह भाव राधा की उस तन्मयता को दर्शाता है जिसमें प्रेमी अपने प्रिय में ही रम जाता है।
"मोर मुकुट और मुरली वारो, तिरछी तिरछी चितवन वारो" — यह वर्णन बाल गोपाल से लेकर रसिक श्याम तक के स्वरूप को जीवंत करता है। श्याम की मुरली की धुन, उनके मुकुट का मोर पंख और उनकी चितवन — सब कुछ दिल को छू लेने वाला है।
"जब कहना की मुरली बाजे, पतझड़ भी सावन सा लागे" — यह भाव तो अद्भुत है। श्रीकृष्ण की मुरली ऐसी है कि उसका स्वर सुनकर पतझड़ भी हरियाली में बदल जाए, उदासी भी झूम उठे, और हृदय का हर कोना आनंदित हो जाए। मुरली की यह धुन केवल कानों को नहीं, आत्मा को छूती है।
"होरी खेले, गूंगट खोले, अपनी अदाओं पे सब को फंसा गया" — यह श्याम की लीलाओं की तरफ इशारा करता है। उनकी होली, उनकी चंचलता, उनकी नटखट अदाएं — सब कुछ ब्रज की गोपियों को मोह लेने वाला है। यह केवल प्रेम नहीं, आत्मिक आनंद है जो उस लीला में डूब जाने से मिलता है।