हम चाकर राधा रानी के, हम चाकर
हम चाकर राधा रानी के, हम चाकर ।
नंदनंदन ठाकुर के चेरे ।
श्री वृषभान किशोरे के,
हम चाकर राधा रानी के ॥
निर्भय रहे विदित नहीं काहो ।
हम डरपत नहीं भवानी से,
हम चाकर राधा रानी के ॥
हरिश्चंद्र नित रहत दीवाने ।
सूरत अजब नूरानी के,
हम चाकर राधा रानी के ॥
श्रेणी : राधा रानी भजन
हम चाकर राधा रानी के, हम चाकर Hum Chakar Rahda Rani Ke Radha Bhajan
"हम चाकर राधा रानी के, हम चाकर" — यह भजन एक ऐसे भक्त का उद्घोष है जो स्वयं को राधा रानी का पूर्ण सेवक, दास और चाकर मानता है। यह भजन केवल शब्द नहीं बल्कि आत्मा की वह घोषणा है जो परम श्रद्धा, समर्पण और गौरव से भरी है। इसमें भक्त अपने आप को राधारानी के चरणों में समर्पित करते हुए, पूरे ब्रज की दिव्यता और श्री राधा के प्रभुत्व का गुणगान करता है।
जब वह कहता है — "हम चाकर राधा रानी के", तो यह कोई मामूली बात नहीं, यह भक्त का गर्व है, उसकी पहचान है, उसका धर्म है। वह खुद को किसी राज्य, किसी बल, किसी भय का नहीं, बल्कि सिर्फ राधा रानी के सेवक रूप में देखता है।
"नंदनंदन ठाकुर के चेरे, श्री वृषभान किशोरे के," — इस पंक्ति में वह भक्त न केवल श्री कृष्ण के दास्यभाव को स्वीकार करता है, बल्कि विशेष रूप से वृषभानु नंदिनी राधा रानी की महिमा को सर्वोपरि मानता है। यह भजन बताता है कि राधा की भक्ति से ही कृष्ण की प्राप्ति संभव है।
जब यह कहा जाता है — "निर्भय रहे विदित नहीं काहो, हम डरपत नहीं भवानी से", तब यह स्पष्ट होता है कि जो राधा रानी के शरणागत हो जाते हैं, उन्हें कोई भय नहीं रहता — न संसार का, न समय का, न ही काल का। राधा का सेवक किसी से डरता नहीं क्योंकि उसका आत्मबल, उसकी रक्षा स्वयं राधा रानी करती हैं।
भजन की अंतिम पंक्ति — "हरिश्चंद्र नित रहत दीवाने, सूरत अजब नूरानी के" — से प्रतीत होता है कि भक्त यह कह रहा है कि वह हर समय राधा रानी के रूप की दीवानी स्थिति में रहता है। उनका स्वरूप ऐसा अद्भुत और दिव्य है कि एक बार जो राधा को देख ले, उसका मन संसार से हटकर बस उन्हीं में रमा रहता है।
यह भजन राधा भक्ति की उस उच्च अवस्था को दर्शाता है जहाँ भक्ति केवल पूजा नहीं, बल्कि जीवन का उद्देश्य बन जाती है। यह उन प्रेमियों के लिए है जिन्होंने श्री राधा को केवल देवी नहीं, अपने जीवन की अधीश्वरी और आराध्य मान लिया है।