बरस रही रामरस भक्ति लूटन वाले लूट रहे, Baras Rahi Ram ras Bhakti Lutan Wale Lut Rahe Lyrics

बरस रही रामरस भक्ति लूटन वाले लूट रहे



बरस रही रामरस भक्ति, लूटन वाले लूट रहे।
पाते हैं जो प्रभु के बंदे, छूटन वाले छूट रहे।।

कोई पीकर भया बावरा, कोई बैठा ध्यान करे।
कोई घर घर अलख जगावे, कोई चारों धाम फिरे।।

कोई मन की प्यास बुझावे, कोई अपने कष्ट मिटावे।
कोई परमारथ काज करे, कोई बन बाबा घूम रहे।।

कोई पिये हिमालय बैठा, कोई पिये देवालय बैठा।
पियो 'अनुरोध' भर भर प्याले, मनुस जनम फिर नाहिं मीले।।



श्रेणी : राम भजन
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"बरस रही रामरस भक्ति, लूटन वाले लूट रहे" एक अत्यंत गूढ़ और हृदय को छू जाने वाला राम भजन है, जिसमें भक्ति के अद्भुत अवसर की ओर सबका ध्यान आकर्षित किया गया है। इस रचना में रामनाम की महिमा, भक्तों की दशा, और इस दुर्लभ मानव जन्म के महत्व को अत्यंत प्रभावशाली ढंग से दर्शाया गया है।

भजन की पहली पंक्ति ही बहुत गहराई से कहती है – "बरस रही रामरस भक्ति, लूटन वाले लूट रहे। पाते हैं जो प्रभु के बंदे, छूटन वाले छूट रहे।" यह पंक्ति आज के युग में भी उतनी ही प्रासंगिक है – जब प्रभु राम के नाम का अमृत बरस रहा है, तब जो सच में भक्ति के प्यासे हैं, वो उसे भरपूर पा रहे हैं, और जो संसार के मोह में उलझे हैं, वे इस अमूल्य अवसर से वंचित रह जा रहे हैं।

भजन की आगे की पंक्तियाँ विभिन्न भक्तों की भक्ति विधियों का सुंदर वर्णन करती हैं – कोई रामरस पीकर बावरा हो गया, कोई ध्यान में लीन है, कोई घर-घर प्रभु का नाम जगा रहा है, तो कोई चारों धाम की यात्रा कर रहा है। हर भक्त अपने-अपने तरीके से प्रभु की भक्ति में लीन है।

रचना में यह भी बताया गया है कि कोई रामनाम से अपने मन की प्यास बुझा रहा है, कोई अपने कष्टों से मुक्ति पा रहा है, कोई परमार्थ के कार्यों में लगा है तो कोई बाबा बनकर घूम रहा है – यानी प्रभु की भक्ति ने हर किसी को एक अलग रूप, अलग मार्ग दिया है, लेकिन अंततः सभी प्रभु प्रेम में डूबे हैं।

भजन की अंतिम पंक्तियाँ अत्यंत प्रेरणादायक हैं – "कोई पिये हिमालय बैठा, कोई पिये देवालय बैठा। पियो 'अनुरोध' भर भर प्याले, मनुस जनम फिर नाहिं मीले।।" इसमें कवि 'अनुरोध' भावपूर्ण आग्रह करते हैं कि इस दुर्लभ मानव जीवन को यूं ही व्यर्थ मत जाने दो, प्रभु राम के प्रेमरस से भरकर पी लो, क्योंकि यह जीवन दोबारा नहीं मिलेगा।

इस भजन को जिसने भी रचा है, उसने आध्यात्मिक अनुभूति, भक्ति की गहराई, और मानव जीवन की सच्चाई को अद्भुत सरलता और सौंदर्य के साथ प्रस्तुत किया है। यह केवल गाने का भजन नहीं, बल्कि आत्मा को झकझोरने वाला संदेश है – कि प्रभु का नाम आज भी सुलभ है, बस चाह होनी चाहिए। यह रचना निःसंदेह भक्तों के मन को चेताने वाली, और उन्हें प्रभु की ओर मोड़ने वाली एक दिव्य पुकार है।

Harshit Jain

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