धुला लों पांव राघव जी अगर जो पार जाना है
धुला लों पांव राघव जी अगर जो पार जाना है,
अगर जो पार जाना है अगर जो पार जाना है,
धूला लो पांव राघव जी.....
पार करते हो सब जग को नाव का तो बहाना है,
तुम्हारे चरणों की धूलि सुना है जादू करती है,
जो छू जाए अगर पत्थर तो सुंदर नारी बनती है,
जो पत्थर नारी बन जाए तो काठ का क्या ठिकाना है,
धूला लो पांव राघव जी....
हमारी नाव ही परिवार का अंतिम सहारा है,
बिना इसके ओ राघव जी कहां मेरा गुजारा है,
ये नैया जिंदगी मेरी ना कोई भी ठिकाना है,
धूला लो पाव राघव जी....
आएंगे मेरे राघवजी मेरे दिल में तमन्ना थी,
करें उद्धार मेरा भी लगन दिल में लगाई थी,
सफल जीवन करूं अपना ना अब कोई बहाना है,
धूला लो पाव राघव जी.....
श्रेणी : राम भजन

"धुला लों पांव राघव जी अगर जो पार जाना है" — यह भजन एक गहरी विनम्रता, अपार श्रद्धा, और आत्मसमर्पण की अद्वितीय मिसाल है। इसमें एक भक्त अपने संपूर्ण जीवन को प्रभु श्रीराम के चरणों में समर्पित करते हुए, मोक्ष और उद्धार की याचना करता है। यह रचना न केवल भावपूर्ण है, बल्कि इसमें रामायण की घटनाओं, भक्ति की महिमा, और व्यक्तिगत जीवन की विवशताओं को अत्यंत सुंदर रूप में पिरोया गया है।
भजन की शुरुआत की पंक्ति "धुला लों पांव राघव जी अगर जो पार जाना है" सीधे प्रभु से प्रार्थना करती है कि अगर भवसागर पार करना है, तो सबसे पहले आपके चरणों की धूल से खुद को पवित्र करना होगा। इसमें एक सादा लेकिन गहन दर्शन छिपा है – कि उद्धार की पहली सीढ़ी है प्रभु की चरण धूलि।
भजन की अगली पंक्तियाँ – "तुम्हारे चरणों की धूलि सुना है जादू करती है, जो छू जाए अगर पत्थर तो सुंदर नारी बनती है" — श्रीराम की लीलाओं की ओर संकेत करती हैं, जैसे अहिल्या उद्धार की कथा। यह उदाहरण उस दिव्यता को दर्शाता है जो उनके स्पर्श मात्र से पत्थर को भी प्राणवान बना देती है।
फिर एक करुण पुकार सुनाई देती है – "हमारी नाव ही परिवार का अंतिम सहारा है..." — जिसमें भक्त अपने जीवन को एक डगमगाती नाव कहकर राघव जी से उसे पार लगाने की विनती करता है। यह जीवन रूपी नैया, जब तक प्रभु की कृपा नहीं मिलती, तब तक मंझधार में अटकी रहती है।
अंतिम अंतरा में – "आएंगे मेरे राघवजी मेरे दिल में तमन्ना थी..." – यह एक गहरे विश्वास और अनंत प्रतीक्षा का प्रतीक है। भक्त कहता है कि उसने राघवजी के आगमन की प्रतीक्षा की है, दिल में लगन लगाई है, और अब जीवन को सफल बनाने की आखिरी उम्मीद उन्हीं पर टिकी है।
यह भजन निःसंदेह रामभक्ति की गहराई, प्रेम, और नम्रता को सुंदर शब्दों में बांधता है। इसकी रचना किसी अनुभवी और भावनाओं से परिपूर्ण हृदय से निकली हुई प्रतीत होती है। यह भजन केवल गाया नहीं जाता, यह अनुभव किया जाता है – जब हृदय में राघव जी के चरणों की धूलि पाने की अभिलाषा प्रबल हो जाती है। यह रचना हर रामभक्त के अंतर्मन को छू लेने वाली है।