गोपियों को नाच नचा गयो री, Gopiyon Ko Naach Naacha Gayo Ri

गोपियों को नाच नचा गयो री



गोपियों को नाच नचा गयो री मेरो वारो सो कन्हैया,
वारो सो कन्हैया मेरो छोटो सो कन्हैया,
वारो सो कन्हैया मेरो छोटो सो कन्हैया,
गोपियों को नाच नचा गयो री.....

बंसी बजाई याने जमुना तट पर,
जमुना तट पर सखी जमुना तट पर,
सखियों के चीर चुराए गयो री मेरो वारो सो कन्हैया,
गोपियों को नाच नचा गयो री.....

बंसी बजाई याने आए मधुबन में,
आय मधुबन में सखी आय मधुबन में,
लूट लूट माखन खाए गयो री मेरो वारो सो कन्हैया,
गोपियों को नाच नचा गयो री.....

बंसी बजाई याने महारास में,
महारास में सखी महारास में,
गोपियों का दिल बहलाए गयो री मेरो वारो सो कन्हैया,
गोपियों को नाच नचा गयो री.....

बंसी बजाई याने कुंज गलिन में,
कुंज गलिन में सखी कुंज गलिन में,
यशोदा को नाच नचाए गयो री मेरो वारो सो कन्हैया,
गोपियों को नाच नचा गयो री.....



श्रेणी : कृष्ण भजन
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“गोपियों को नाच नचा गयो री” — यह भजन बाल रूप से लेकर रासलीला तक श्रीकृष्ण की लीलाओं का सुंदर, चंचल और भावपूर्ण वर्णन करता है। इसमें वह रस है जो केवल ब्रज की गलियों में बहता है, और वह भाव है जो केवल एक सच्चा भक्त ही महसूस कर सकता है।

इस भजन में श्रीकृष्ण की बाल लीला और रास लीला का मनोहारी चित्रण किया गया है। हर पंक्ति में गोपियों के प्रति उनका हास्य-रस, प्रेम, और शरारतें दिखाई देती हैं। “गोपियों को नाच नचा गयो री, मेरो वारो सो कन्हैया” — यह पंक्ति गोपियों की भक्ति और कृष्ण की छेड़छाड़ भरी लीलाओं का प्रतीक है। गोपियाँ कृष्ण की बंसी की धुन पर इस कदर मोहित हैं कि उनका तन-मन सब कन्हैया के अधीन हो जाता है।

जब “बंसी बजाई याने जमुना तट पर” कहा जाता है, तो एक चित्र उभरता है जहाँ कृष्ण जमुना किनारे बंसी बजा रहे हैं और गोपियाँ मोह में डूबी दौड़ी चली आ रही हैं। यह वही लीला है जहाँ कृष्ण ने सखियों के “चीर चुराए” और उन्हें भक्तिपूर्ण भाव में समर्पित कर दिया।

माखन चोरी की लीला “लूट लूट माखन खाए गयो री” — यह पंक्ति कृष्ण की बाल सुलभ शरारतों को दर्शाती है। वहीं “महारास में गोपियों का दिल बहलाए गयो री” यह संकेत देता है कि किस तरह कृष्ण ने प्रेम के सर्वोच्च रूप — रासलीला — के माध्यम से गोपियों को आत्मा के परम आनंद की अनुभूति कराई।

भजन में कुंज गलियों का भी उल्लेख आता है — “बंसी बजाई याने कुंज गलिन में, यशोदा को नाच नचाए गयो री” — जो दर्शाता है कि कृष्ण की लीला केवल गोपियों तक सीमित नहीं थी, बल्कि अपनी माता यशोदा तक को वह अपनी माया में बांध लेते थे।

यह भजन न केवल एक मधुर भक्ति गीत है, बल्कि एक जीवंत झांकी है ब्रज की। जहाँ राधा, गोपियाँ, यशोदा, और संपूर्ण वृंदावन श्रीकृष्ण की बांसुरी पर नाचता है। इसमें लोक धुनों का प्रयोग है जो इसे और अधिक हृदयस्पर्शी बनाता है।

Harshit Jain

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