राम लक्ष्मण ना माँगो गुरुजी
राम लक्ष्मण ना माँगो गुरुजी,
वो तो देने के क़ाबिल नहीं हैं,
उनकी छोटी उमरिया अभी है,
बन में जाने के क़ाबिल नहीं हैं......
राम के सर पे मुकुट सजे हैं,
और चंदन के तिलक लगे हैं,
सिर झुकाने के क़ाबिल नहीं है,
राम लक्ष्मण ना माँगो गुरुजी......
इनके अंगों में बटुका सजे हैं,
और कमर पीताम्बर सजे हैं,
धनुष उठाने के क़ाबिल नहीं हैं,
राम लक्ष्मण ना माँगो गुरुजी......
उनके पैरों में पायल बंधे हैं,
उनके हाथों में लाली लगी हैं,
कंकड़ पे चलने के क़ाबिल नहीं हैं,
राम लक्ष्मण ना माँगो गुरुजी.......
श्रेणी : राम भजन
राम और लक्ष्मण की कोमल छवि हमारे हृदय में बसी हुई है। उनकी छोटी-सी उम्र में नन्हें पैरों में पायल की रुनझुन है और हाथों में मासूमियत की लाली। उनकी मोहक मुस्कान और कंधों पर सजी पीताम्बरी उन्हें एक राजकुमार की तरह प्रस्तुत करती है। उनके सिर पर मुकुट की शोभा और चंदन का तिलक, उन्हें जिम्मेदारियों से दूर, बालपन में रमने के लिए उपयुक्त बनाते हैं। उनके हाथों में तीर-धनुष उठाने की न परिपक्वता है, न ही वे जंगल के कंकड़ों पर चलने के काबिल हैं।
बालपन की इन मूरतों को गुरुकुल में भेजना उनकी मासूमियत और सुखमय जीवन से वंचित करना होगा। उनकी छोटी-छोटी हंसी और खिलखिलाहट में ही सम्पूर्ण संसार की खुशी छुपी है। राम और लक्ष्मण की यह मोहक छवि उनके बचपन की सुंदरता और उनके सहज जीवन का परिचायक है।