आई ग्यारस चान्न की खाटू वाले, aaee gyaaras chaann kee khaatoo vaale

 आई ग्यारस चान्न की खाटू वाले



( तर्ज - फिरकी वाली )

आई ग्यारस चान्न की खाटू वाले,
तू हमको खाटू बुला ले,
करेंगे थारी चाकरी चाहे,
दरबारी मे हेलो फिर वाले,

एक लो मैं तो आउ ना बाबा परिवार में साथ लाउगा,
काम कर तो थक जाऊंगा जब मै बन्ने काम लगाऊंगा,
तनख्वाह तुमसे कुछ ना मांगू जरा मुस्कुराले,

तू हमको खाटू बुला ले ...

महिमा सुन कर तेरी बाबा भीड़ भारी आई है,
के मोटा और के छोटा है नर नारी घणी आई है,
नजर ना लागे तेरे बाबा टीको तू लगवा ले,

तू हमको खाटू बुला ले ...

लकी तेरो दास पुरानो नये जमाने में जाने के,
भोलो भालो तेरो टाबरियो झूठ कपट जाने के,
तूने हीं पाला है मुझको आगे तू ही संभाले,

तू हमको खाटू बुला ले ...

Lyr ics - lucky Shukla



श्रेणी : खाटू श्याम भजन

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यह भजन "आई ग्यारस चान्न की खाटू वाले" प्रसिद्ध भजन लेखक लकी शुक्ला द्वारा रचित एक जीवंत, उत्साहपूर्ण और भक्तिमय खाटू श्याम भजन है, जिसकी तर्ज लोकप्रिय गीत "फिरकी वाली" पर आधारित है। यह भजन विशेष रूप से ग्यारस (एकादशी) जैसे पर्व के अवसर पर लिखा गया है, जब भक्त खाटू श्याम के दर्शन को लालायित होते हैं और बाबा को भावपूर्ण निमंत्रण देते हैं।

भजन की शुरुआत ही एक भावुक प्रार्थना से होती है — "तू हमको खाटू बुला ले।" यह पंक्ति भक्त की तीव्र आस्था और बाबा से मिलने की लालसा को दर्शाती है। यहां यह भाव भी झलकता है कि भक्त अपने पूरे परिवार सहित बाबा की चाकरी करने को तैयार है, बिना किसी स्वार्थ के, बस बाबा की एक मुस्कान पाने की लालसा लिए।

दूसरे अंतरे में यह दिखाया गया है कि खाटू श्याम की महिमा कितनी विशाल है। भीड़ भारी है, और सभी जातियों व वर्गों के लोग — बच्चे, बूढ़े, नर-नारी — बाबा की एक झलक पाने के लिए आए हुए हैं। यह बाबा की लोकप्रियता और सर्वव्यापकता को दर्शाता है। भक्त भाव से कहता है कि बाबा, आपको किसी की बुरी नजर न लगे — आप तो माथे पर टीका लगवा लीजिए।

तीसरे अंतरे में लकी शुक्ला एक बहुत ही भावनात्मक और सच्चे रिश्ते को उजागर करते हैं। वह स्वयं को बाबा का पुराना भक्त बताते हुए कहते हैं कि "इस नए जमाने में भी मैं तेरा ही दास हूं।" वह यह भी बताते हैं कि वह छल-कपट से दूर हैं, और पूरी सच्चाई से बाबा की सेवा में लगे हैं। आखिर में वह यह विश्वास भी जताते हैं कि "जैसे तूने अब तक संभाला है, आगे भी संभालना।"

निष्कर्षतः, यह भजन केवल शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि एक भक्त की आत्मा की पुकार है। लकी शुक्ला की लेखनी में सादगी, सच्चाई और भक्ति का संगम स्पष्ट दिखाई देता है। भजन में चुटकीले शब्दों और भावनात्मक गहराई का सुंदर मेल है जो इसे हर भक्त के दिल से जोड़ देता है।

Harshit Jain

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