सांचे मीत बिहारी पाये
बौंल-प्रिया लाल राजै जहां,तहां वृंदावन जांन,
वृंदावन तज एक पग जायें ना रसिक सुजांन,
साचें मीत बिहारी पाये...
1.जब ही ते वे तब ही ते हम,
करत सुं मन के भाये,
सांचे मीत बिहारी पाये,
साचें मीत बिहारी पाये...
2.लिए सुभाव रहत निसवासर,
अति आनंद बढ़ाये,
सांचे मीत बिहारी पाये,
साचें मीत बिहारी पाये...,
3.श्री हरिदास जू रसिक शिरोमणि,,
हसिं हसिं कण्ठं लगाये,
सांचे मीत बिहारी पाये,
साचें मीत बिहारी पाये...
बाबा धसका पागल पानीपत
संपर्कंसुत्र-7206526000
श्रेणी : कृष्ण भजन

यह भजन “सांचे मीत बिहारी पाये” एक अत्यंत भावपूर्ण और रसिक भावों से युक्त रचना है, जिसे बाबा धसका पागल पानीपत द्वारा लिखा गया है। इस भजन में वृंदावन की महिमा और श्री बिहारी लाल यानी श्रीकृष्ण के साथ आत्मिक संबंध की गहराई को बहुत ही सुंदर शब्दों में अभिव्यक्त किया गया है।
भजन की शुरुआत इस भाव से होती है कि जहां प्रिय लाल (श्रीकृष्ण) निवास करते हैं, वहीं वृंदावन है। रसिक भक्त कभी भी वृंदावन को छोड़ने की कल्पना तक नहीं कर सकते, क्योंकि उनके लिए यह केवल एक स्थान नहीं, बल्कि परम प्रेम का केंद्र है।
हर अंतरे में यह भाव उभरकर आता है कि जिसने बिहारी लाल को सच्चा मित्र बना लिया, उसने जीवन का सार पा लिया। उनके साथ बिताया हर पल मन के भावों के अनुरूप होता है, आनंद से भरा होता है। यह भजन यह भी दर्शाता है कि सच्चे प्रेम और भक्ति में कोई औपचारिकता नहीं होती, केवल दिल से निकला भाव होता है जो ठाकुर को प्रिय लगता है।
तीसरे अंतरे में रसिक शिरोमणि श्री हरिदास जी का वर्णन है, जो स्वयं श्रीकृष्ण के साक्षात दर्शन करते थे। उनका जीवन, उनका हृदय, उनकी हर श्वास बिहारी जी के प्रेम में रंगी थी।
यह भजन वृंदावन की उस दिव्य भावना को जाग्रत करता है जहाँ हर गली, हर कण, और हर मन बिहारी जी के नाम में डूबा हुआ है। “सांचे मीत बिहारी पाये” कोई साधारण पंक्ति नहीं, यह एक अनुभूति है, जो केवल भाग्यशाली भक्त ही जी पाते हैं।
यह रचना न केवल भाव को छूती है, बल्कि भक्त को बिहारी जी के चरणों में ले जाकर, उन्हें भावसमर्पण की अनुभूति कराती है।