श्याम आणो पड़सी
श्याम खाटू वाले नै इबै आणो पड़सी,
विपदा सू दास नै बचाणो पड़सी,
विपदा सू दास नै बचाणो पड़सी -2
श्याम खाटू वाले नै लीले घोड़े वाले नै इबै आणो पड़सी,
विपदा सू दास नै बचाणो पड़सी,
दानी हो वरदानी हो थे कल्युग मै खाटूवासी,
पायो है जो रूप दिखाणो पड़सी,
श्याम खाटू वाले नै इबै आणो पड़सी,
शीश दियो वरदान लियो थे अमर कियो लीलाधारी '
सुणी है कहानीया निभाणी पड़सी,
श्याम खाटू वाले नै इबै आणो पड़सी,
गणपत दाता हनुमत दाता साथ रवै शीव कैलाशी,
भुल्यो हू मै राह दिखानी पड़सी,
श्याम खाटू वाले नै इबै आणो पड़सी,
रोता आवै हँसता जावै कोटि कोटि जन अभिलाषी,
दुनिया कै ताना सै बचाणो पड़सी,
श्याम खाटू वाले नै इबै आणो पड़सी,
कह गुरु साँवल राम रटै सै सुख पावै है नर नारी,
शरण पड़े की निभाणी पड़सी,
श्याम खाटू वाले नै रबै आणो पड़सी,
श्रेणी : कृष्ण भजन
श्याम खाटू वाले ने इब आणो पड़सी | Dinu Indoriya | Rajasthani Bhajan | Khatu Shyam Bhajan 2020
यह भजन "श्याम खाटू वाले नै इबै आणो पड़सी" राजस्थानी भावों और भक्ति रस से सराबोर एक अत्यंत भावपूर्ण रचना है, जिसमें शरणागत भक्त की पुकार और खाटू श्याम बाबा से सहायता की याचना का अद्भुत समावेश है। यह भजन श्याम भक्तों के हृदय की उस व्यथा को दर्शाता है, जब वे संसार की विपदाओं से घिर जाते हैं और उन्हें केवल श्याम नाम में ही आश्रय नजर आता है।
हर पंक्ति में विनम्रता, आर्त भाव और पूर्ण समर्पण झलकता है। "विपदा सू दास नै बचाणो पड़सी" — यह दोहराव केवल शब्दों का नहीं, बल्कि एक सच्चे भक्त की पुकार है, जो खाटू वाले श्याम बाबा से रक्षा की उम्मीद लेकर दरबार में आया है। घोड़े पर सवार, लीला करने वाले, दानी और वरदानी श्याम की महिमा को इस भजन में भावुकता के साथ गाया गया है।
भजन में यह भी स्मरण कराया गया है कि श्याम बाबा ने युद्धभूमि में शीश अर्पण कर अमरत्व प्राप्त किया और तभी से वे कलियुग के जीवों के रक्षक बन गए। "कहानियाँ सुणी है, अब निभाणी पड़सी" — यह पंक्ति हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि भक्त केवल विश्वास नहीं करता, वह उम्मीद भी रखता है कि भगवान उसके साथ न्याय करेंगे।
गणेश, हनुमान और शिव जैसे देवों की संगति का उल्लेख कर यह बताया गया है कि बाबा श्याम केवल भक्तों के रक्षक ही नहीं, बल्कि देवताओं के भी प्रिय हैं। "भुल्यो हूँ मैं राह, दिखाणी पड़सी" — यह भाव बताता है कि मानव जब जीवन की दिशा भूल जाता है, तब वह प्रभु की ओर देखता है।
इस भजन के अंत में गुरु साँवल राम का नाम लेते हुए यह बताया गया है कि जो नर-नारी शरण में आते हैं, उन्हें सुख की प्राप्ति होती है। इसीलिए, बाबा श्याम को फिर से आकर अपने भक्त की लाज निभानी होगी।
सार रूप में, यह भजन केवल एक विनती नहीं, बल्कि विश्वास, समर्पण और भक्ति का वह भाव है जिसमें हर श्याम भक्त अपने जीवन की आशा देखता है। यह रचना श्याम प्रेमियों के लिए एक अमूल्य आध्यात्मिक धरोहर की तरह है।