घड़ी घड़ी मैं सोचूं तुझको
घड़ी घड़ी मैं सोचूं तुझको घड़ी घड़ी मैं सोचूं,
घड़ी घड़ी मैं सोचूं तुझको घड़ी घड़ी मैं सोचूं,
तू है मेरा प्रियतम कान्हा हर घड़ी तुझे सोचूं,
तू है मेरा प्रियतम कान्हा हर घड़ी तुझे सोचूं,
घड़ी घड़ी मैं सोचूं तुझको घड़ी घड़ी मैं सोचूं,
बंद आंखों में तू ही तू है खोलूँ तो एक तू ही,
बंद आंखों में तू ही तू है खोलूँ तो एक तू ही,
हे मनमोहन मेरी चाहत मेरी दुनिया तू ही,
हे मनमोहन मेरी चाहत मेरी दुनिया तू ही,
सांसों की लय पे मैं तेरी धुन मुरली की सोचूं,
घड़ी घड़ी मैं सोचूं तुझको घड़ी घड़ी मैं सोचूं.....
पहले देखूं तुझको फिर मैं उगता सूरज देखूं,
पहले देखूं तुझको फिर मैं उगता सूरज देखूं,
चंदा की चांदनिया में भी तेरी ही सूरत देखूं,
चंदा की चांदनिया में भी तेरी ही सूरत देखूं,
निंदिया में सपनों में कान्हा बस तुझको ही सोचूं,
घड़ी घड़ी मैं सोचूं तुझको घड़ी घड़ी मैं सोचूं....
घर को बुहारूं अंगना संवारूँ साथ मेरे तू रहता,
घर को बुहारूं अंगना संवारूँ साथ मेरे तू रहता,
करूं रसोई तब भी कान्हा डेरा घाले रहता,
करूं रसोई तब भी कान्हा डेरा घाले रहता,
तन मन ऐसा मोहा तूने घड़ी घड़ी तुझे सोचूं,
घड़ी घड़ी मैं सोचूं तुझको घड़ी घड़ी मैं सोचूं.....
भीड़ पड़ी जब भी मुझपे तूने बिगड़ी मेरी संवारी,
भीड़ पड़ी जब भी मुझपे तूने बिगड़ी मेरी संवारी,
फिकर की अब कोई बात नहीं तूने ली है जिम्मेवारी,
फिकर की अब कोई बात नहीं तूने ली है जिम्मेवारी,
तू भी सोचता मुझको कान्हा जितना मैं तुझे सोचूं,
घड़ी घड़ी मैं सोचूं तुझको घड़ी घड़ी मैं सोचूं,
घड़ी घड़ी मैं सोचूं कान्हा घड़ी घड़ी मैं सोचूं,
घड़ी घड़ी मैं सोचूं,
घड़ी घड़ी मैं सोचूं....
गायिका -रंजना गुंजन भरतिया
रचना - रंजना गुंजन भरतिया
संगीत - सकल देव साहनी
श्रेणी : कृष्ण भजन
घड़ी घड़ी मैं सोचूं तुझको, घड़ी घड़ी मैं सोचूं...(Ghadi ghadi main sochun tujhko, ghadi ghadi main)
"घड़ी घड़ी मैं सोचूं तुझको" एक अत्यंत भावुक और आत्मीय कृष्ण भजन है, जिसे स्वर और शब्द दोनों में सजाया है रंजना गुंजन भरतिया जी ने। इस भजन का संगीत दिया है सकल देव साहनी जी ने, और यह रचना उन भक्तों की भावना को पूरी गहराई से उकेरती है जो अपने प्रिय कान्हा को हर पल, हर सांस में याद करते हैं।
भजन का प्रत्येक पद मानो एक प्रेमी आत्मा की पुकार है, जो अपने प्रियतम कृष्ण के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकती। "तू है मेरा प्रियतम कान्हा, हर घड़ी तुझे सोचूं" – इस एक पंक्ति में समस्त भक्ति, प्रेम और आत्मसमर्पण समाहित है।
इस भजन की सबसे खास बात यह है कि यह न सिर्फ मंदिरों या भजन सभाओं में गाने योग्य है, बल्कि घर में, रसोई में, दिनचर्या के हर कार्य में भगवान को साथ महसूस करने वाली हर स्त्री या भक्त की भावना को शब्द देता है। “घर को बुहारूं, अंगना संवारूं, साथ मेरे तू रहता,” जैसी पंक्तियाँ इस बात का प्रतीक हैं कि भगवान केवल पूजा के समय नहीं, बल्कि हमारे हर सांस, हर काम में उपस्थित रहते हैं — बस उन्हें महसूस करने की जरूरत है।
भजन में यह भी बताया गया है कि जब जीवन में संकट आता है, तो कृष्ण स्वयं उसकी जिम्मेदारी उठाते हैं। यह पंक्ति – "फिकर की अब कोई बात नहीं, तूने ली है जिम्मेवारी" – श्रद्धा की पराकाष्ठा को दर्शाती है, जहाँ भक्त बिना डरे अपने जीवन को भगवान पर सौंप देता है।
"घड़ी घड़ी मैं सोचूं तुझको" एक ऐसा भजन है जिसे सुनते ही श्रोता का हृदय प्रभु प्रेम से भीग उठता है। यह रचना रंजना जी की भक्ति भावना और सरस लेखनी का सुंदर संगम है, जो न केवल सुनने वालों को मंत्रमुग्ध करती है, बल्कि उन्हें एक आध्यात्मिक यात्रा पर ले जाती है।