मुझे राधा रानी मेरा श्याम मिला दे
मुझे राधा रानी मेरा श्याम मिला दे,
मुझे राधा रानी मेरा श्याम मिला दे,
मुझे राधा रानी मेरा श्याम मिला दे,
श्याम मिला दे राधा श्याम मिला दे,
श्याम मिला दे राधा श्याम मिला दे,
मुझे राधा रानी मेरा श्याम मिला दे,
मुझे राधा रानी मेरा श्याम मिला दे ।।
श्याम पुकारूँ मैं तो श्याम न आये,
क्यूँ रूठा मुझसे कोई न बताए,
श्याम पुकारूँ मैं तो श्याम न आये,
क्यूँ रूठा मुझसे कोई न बताए,
क्यूँ रूठा मुझसे कोई न बताए,
मेरे मन की राधा रानी पीड़ मिटा दे,
मेरे मन की राधा रानी पीड़ मिटा दे,
श्याम मिला दे राधा श्याम मिला दे,
मुझे राधा रानी मेरा श्याम मिला दे ।।
श्याम बिना मेरा जीवन सूना,
खाली दिल का हर एक कोना,
श्याम बिना मेरा जीवन सूना,,
खाली दिल का हर एक कोना,
खाली दिल का हर एक कोना,
सांसें भी छुटन लागी दरश करा दे,
सांसें भी छुटन लागी दरश करा दे,
श्याम मिला दे राधा श्याम मिला दे,
मुझे राधा रानी मेरा श्याम मिला दे ।।
श्री कृष्ण शरणम ममः,अपनी शरण ले लो,
साँसों का मोह नही, जीवन चाहे ले लो,
श्री कृष्ण शरणम ममः,अपनी शरण ले लो,
साँसों का मोह नही, जीवन चाहे ले लो,
साँसों का मोह नही, जीवन चाहे ले लो,
अपना बना ले मुझे, खुद में समा ले,,
अपना बना ले मुझे, खुद में समा ले,
श्याम मिला दे राधा श्याम मिला दे,
मुझे राधा रानी मेरा श्याम मिला दे ।।
श्याम मिला दे राधा श्याम मिला दे,,
श्याम मिला दे राधा श्याम मिला दे,
मुझे राधा रानी मेरा श्याम मिला दे,
मुझे राधा रानी मेरा श्याम मिला दे,
मुझे राधा रानी मेरा श्याम मिला दे ।।
श्रेणी : कृष्ण भजन
Mujhe Radha Rani mera Shyam mila de
श्रीकृष्ण और राधा का प्रेम भक्तों के लिए अनंत भक्ति और आत्मसमर्पण का प्रतीक है। "मुझे राधा रानी मेरा श्याम मिला दे" भजन भक्त की उस गहरी तड़प और प्रार्थना को प्रकट करता है, जिसमें वह राधा रानी से विनती करता है कि वे उसे श्रीकृष्ण का दर्शन करा दें। यह भजन भक्ति की उस अवस्था को दर्शाता है, जब मनुष्य अपने सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर केवल कृष्ण-प्रेम में लीन होना चाहता है।
इस भजन में भक्त का हृदय करुणा और प्रेम से भरा हुआ है। वह मानता है कि स्वयं श्रीराधा के कृपा-प्रसाद से ही श्यामसुंदर का सान्निध्य संभव हो सकता है। इसलिए वह पूरी श्रद्धा के साथ राधा रानी से प्रार्थना करता है कि वे उसे अपने प्रियतम श्रीकृष्ण से मिला दें। यह भजन सुनकर हर कृष्ण-भक्त के हृदय में प्रेम और समर्पण की भावना उमड़ पड़ती है, जिससे वह श्रीकृष्ण की भक्ति में और अधिक गहरे उतर जाता है।
यह दिव्य रचना भक्तों को आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति कराती है और उन्हें यह सिखाती है कि यदि हम निःस्वार्थ प्रेम और भक्ति के मार्ग पर चलें, तो श्रीराधा-कृष्ण हमें अपने शरण में अवश्य स्वीकार कर लेंगे।