खड़ी खड़ी गौरा मनाए रही शिव को
खड़ी खड़ी गौरा मनाए रही शिव को,
उँ उँ कंह के रिझाए रही शिव को,
सोने का लोटैा गंगाजल पानी,
बूंद बूंद गौरा चढ़ाए रही शिव को,
ऊँ ऊँ कह के मनाए रही शिव को,
खडी खड़ी गौरा मनाए रही शिव को,
उँ उँ कंह के रिझाए रही शिव को,
बागों से जाके गौरा फूल तोड लायी,
गुंध गुंध माला चढ़ाय रही शिव को,
ऊँ ऊँ कह के रिझाए रही शिव को,
खडी खड़ी गौरा मनाए रही शिव को,
उँ उँ कंह के रिझाए रही शिव को,
बागों से जाके गौरा बेलपत्र लाई,
राम नाम लिख के चढ़ाए रही शिव को,
ऊँ ऊँ कह के रिझाए रही शिव को,
खडी खड़ी गौरा मनाए रही शिव को,
उँ उँ कंह के रिझाए रही शिव को,
जंगल में जाके गौरा भांग तोड़ लाई,
पीस पीस भंगिया पिलाए रहीं शिव को,
उँ उँ कंह के रिझाए रही शिव को,
खडी खड़ी गौरा मनाए रही शिव को,
उँ उँ कंह के रिझाए रही शिव को,
श्रेणी : शिव भजन
2/3/25♥️खडी खड़ी गौरा मनाए रही शिव को#🇳🇿#trending #viralvideo #mahashivratri #bhajan #shivparvati
यह भजन माँ पार्वती की अखंड भक्ति और तपस्या का जीवंत चित्रण प्रस्तुत करता है। "खड़ी-खड़ी गौरा मनाए रही शिव को" भजन में दर्शाया गया है कि कैसे माता गौरी अपने प्रिय शिव को प्रसन्न करने के लिए विविध रूपों में आराधना कर रही हैं।
वह स्वर्ण कलश में गंगाजल भरकर एक-एक बूंद भगवान शिव को अर्पित करती हैं, पुष्पमालाएँ गूँथकर चढ़ाती हैं, बेलपत्रों पर राम नाम लिखकर अर्पित करती हैं, और भांग तैयार करके अपने भोलेनाथ को समर्पित करती हैं। हर क्रिया के साथ उनके मन में शिव से मिलने की प्रबल इच्छा झलकती है।
इस भजन में पार्वतीजी के गहरे प्रेम और समर्पण की भावना व्यक्त होती है, जिससे हर भक्त को यह प्रेरणा मिलती है कि जब तक श्रद्धा और निष्ठा सच्ची हो, तब तक भगवान अवश्य प्रसन्न होते हैं।
यह भजन विशेष रूप से महाशिवरात्रि और शिव-भक्तों के लिए अत्यंत भावपूर्ण और प्रेरणादायक है। इसकी मधुर धुन और गहरी भावनाएँ भक्तों को शिव-भक्ति में रमाने का अद्भुत सामर्थ्य रखती हैं।