मोहे होली पे रंग दो लाल
मोपे खूब गुलाल डारो,
अपने ही रंग में, ढाल डारो,
नन्द बाबा को लाला ऐसो,
तिरछी नजरिया ते मार डारो,
बाँह पकड़कर कै खींचे,
ना छोड़े यशोदा दुलारो,
रंग दियो है ऐसा,
जीवन मेरो संवार डारो...
वृंदावन खेल रच्यो भारी ।
वृंदावन की गोरी नारी टूटी हार फटे सारी ॥ [1]
ब्रज की होरी ब्रज की गारी ब्रज की श्री राधा प्यारी ॥
‘पुरुषोत्तम’ प्रभु होरी खेले तन मन धन सरबस वारी ॥
मोहे होली पे रंग दो लाल, नंदलाल,
तेरे रंग में रंगने तरस रही।
मोहे होली पे रंग दो लाल, नंदलाल,
तेरे रंग में रंगने तरस रही।
MORE अंग लगे, तेरो रंग लगे,
मेरे अंग लगे, तेरो रंग लगे,
टेसू और कुमकुम संग लगे,
और लगे अबीर गुलाल, गुलाल।
तेरे रंग में रंगने तरस रही।
मोहे होली पे रंग दो लाल, नंदलाल….
मोरी बाँह पकर मुझे ले जाओ,
पिचकारी संग भिगा जाओ,
बरसा दो रंग की धार, हाँ धार।
तेरे रंग में रंगने तरस रही।
ब्रज की गलियों में रंग उड़े,
प्यार से लठ मार देखो (ये) लड़ें
ब्रज की गलियों में रंग उड़े,
लठ मार मार देखो (ये) लड़ें
और बजे बसंत के राग, हाँ राग
तेरे रंग में रंगने तरस रही।
श्रेणी : कृष्ण भजन
मोहे होली पे रंग दो लाल | Apne Braj Ka Holi Bhajan | Full Dance Mood | Madhavas Rock Band #holi
मोहे होली पे रंग दो लाल" एक अत्यंत मनभावन, रसपूर्ण और आनंद से परिपूर्ण ब्रज शैली का श्रीकृष्ण भजन है, जो होली के पर्व पर रचा गया है। यह भजन न सिर्फ होली की रंगीनता को दर्शाता है, बल्कि राधा-कृष्ण की प्रेमलीला, ब्रज की लठमार परंपरा और कृष्ण भक्ति की गहराई को भी बड़े ही भावुक अंदाज़ में प्रस्तुत करता है।
भजन की शुरुआत होती है उस आग्रह से, जहाँ एक गोपी श्रीकृष्ण से विनती कर रही है — “मोहे होली पे रंग दो लाल, नंदलाल” — यह सिर्फ रंग लगाने की बात नहीं, बल्कि अपने प्रेम, अपनी भक्ति और अपने रंग में पूरी तरह डूबा देने की पुकार है। यह रंग सांसारिक नहीं, बल्कि आत्मिक है, जो गोपी के तन ही नहीं, मन को भी रँग देता है।
भजन में वृंदावन की गलियों का जीवंत चित्रण किया गया है — कहीं रंगों की फुहारें हैं, कहीं लठमार की छेड़खानियाँ, कहीं टेसू और अबीर की सुगंध, और कहीं श्रीकृष्ण की मुरली की झंकार। गोपियों के भाव, राधा रानी की लज्जा, और नंदलाल की नटखट अदाएं — सब कुछ इस भजन में मानो साक्षात प्रकट हो जाते हैं।
“मेरे अंग लगे, तेरो रंग लगे” — इन पंक्तियों में समर्पण की पराकाष्ठा है। यह महज श्रृंगार नहीं, बल्कि भक्त का आराध्य में विलीन हो जाने का आह्वान है। भजन का प्रत्येक शब्द, हर पंक्ति कृष्ण की लीला को नहीं, उस भक्ति भाव को उकेरती है जिसमें हर भक्त कृष्ण से यही कहता है — अब जीवन में बस तेरे ही रंग की दरकार है।
इस भजन को Madhavas Rock Band ने अपने विशेष संगीतमय अंदाज़ में प्रस्तुत किया है, जो पारंपरिक भक्ति रस में आधुनिक संगीत की ऊर्जा का समावेश करता है। उनके सुरों में वृंदावन की गलियों की चहल-पहल, होली की मस्ती, और प्रेम की आभा महसूस होती है।