कृष्ण दर्शन को मन ललचाया शिव भोला, Krishan darshan ko mann lalchaya

कृष्ण दर्शन को मन ललचाया शिव भोला



कृष्ण दर्शन को मन ललचाया
शिव भोला गोकुल में आया ॥
शिव भोला गोकुल में आया...

झोली कांधे धरी हाथ ले ली छड़ी ॥
बंदर को हनुमान बनाया
शिव भोला गोकुल में आया ।
कृष्ण दर्शन को मन ललचाया...

द्वारे नंद बाबा के दिया डेरा जमा ॥
और डम डम डमरू बजाया
शिव भोला गोकुल में आया ।
कृष्ण दर्शन को मन ललचाया...

सुन के डमरू की तान बच्चे बूढ़े जवान ॥
सबने आ कर के घेरा बनाया
शिव भोला गोकुल में आया ।
कृष्ण दर्शन को मन ललचाया...

कहाँ थे तुम हरि काहे देरी करी ॥
मेरे नैनों को क्यों तरसाया
शिव भोला गोकुल में आया ।
कृष्ण दर्शन को मन ललचाया...

आए यशोधा के लाल किया शिव को निहाल ॥
हनुमत ने शीश झुकाया
शिव भोला गोकुल में आया ।
कृष्ण दर्शन को मन ललचाया...

करके शंभू का ध्यान चले करुणा निधान ॥
अपने भक्तों का मान बढ़ाया
शिव भोला गोकुल में आया ।
कृष्ण दर्शन को मन ललचाया...

अपलोडर - अनिलरामूर्तिभोपालशिव



श्रेणी : कृष्ण भजन



कृष्ण भजन || कृष्ण दर्शन को मन ललचाया शिव भोला गोकुल में आया || Krishan darshan ko mann lalchaya

यह भजन "कृष्ण दर्शन को मन ललचाया, शिव भोला गोकुल में आया" अत्यंत भावपूर्ण और अद्भुत भक्ति भाव से ओतप्रोत रचना है, जिसमें भगवान शंकर की उस अनन्य भक्ति का चित्रण किया गया है जो उन्होंने बाल कृष्ण के दर्शन के लिए की।

यह गीत दर्शाता है कि जब भोलेनाथ के ह्रदय में कृष्ण के दर्शन की तीव्र लालसा जगी, तो वे सब कुछ छोड़कर साधु वेश में गोकुल पहुँच गए। कांधे पर झोली, हाथ में छड़ी, और डमरू की धुन लिए शिव बाबा स्वयं नंद बाबा के द्वार पर आकर बैठ गए। उनकी डमरू की तान सुनकर गोकुल के बच्चे, बूढ़े, जवान—all एकत्र हो गए।

भोलेनाथ की व्याकुलता इस पंक्ति में झलकती है — “कहाँ थे तुम हरि, काहे देरी करी, मेरे नैनों को क्यों तरसाया।” यह प्रश्न शुद्ध प्रेम और भक्ति का प्रतीक है। जब यशोदा जी के लाल (बालकृष्ण) ने दर्शन दिए, तो शिव निहाल हो उठे। हनुमान जी ने भी अपना शीश झुका दिया, जो यह संकेत देता है कि सभी भक्त और देवता उस दिव्य क्षण में सहभागी बनना चाहते हैं।

अंततः यह भजन यह बताता है कि जब भक्त सच्चे ह्रदय से प्रभु को पुकारता है—चाहे वह स्वयं महादेव ही क्यों न हों—तो भगवान अवश्य दर्शन देते हैं। इस भजन का हर शब्द शंकर और श्रीकृष्ण के प्रेम, श्रद्धा, और मिलन की अलौकिक अनुभूति कराता है। यह केवल संगीत नहीं, बल्कि भक्ति का सजीव अनुभव है।

Harshit Jain

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