माखन चुराए चुप के से आये नटखट नंदलाला
माखन चुराए चुप के से आये नटखट नंदलाला,
छुपा ले अपनी दही की मटकियां आ गया गोविंदा गोपाला,
हीरे न लुटे मोती न लुटे है ये चोर निराला,
यहाँ दिखा माखन का छीका तोड़ दियां वही ताला,
ग्वालो की टोली संग में लाये भोली सी सूरत वाला,
सम्बल जा ओ भोली बाला,
छुपा ले अपनी दही की मटकियां आ गया गोविंदा गोपाला,
इसकी नजर से बच के ना जाये गोकुल की गोरी रे,
माखन चुरा के आंखे दिखाए करे है जोरा जोरि रे,
छलियाँ छल के छुप छुप जाये बन जाये फिर गोपाला,
करे नित गड़बड़ घोटाला,
छुपा ले अपनी दही की मटकियां आ गया गोविंदा गोपाला,
श्रेणी : कृष्ण भजन
माखन चुराए चुप के से आये, Makhan Churaye Chup Ke Se Aaye
यह भजन "माखन चुराए चुप के से आये नटखट नंदलाला" भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं पर आधारित एक अत्यंत सुंदर और भावपूर्ण रचना है। इसमें नंदलाल श्रीकृष्ण की उस मोहक छवि को दर्शाया गया है, जब वे गोकुल में ग्वाल-बालों संग माखन चुराने की लीलाएं करते थे। भजन की पंक्तियाँ श्रीकृष्ण की नटखट अदाओं, भोलेपन और ममतामयी छवि को जीवंत करती हैं। यह रचना भक्त के भावों को छू लेने वाली है, जिसमें श्रीकृष्ण का माखन चोरी करना भी एक दिव्य लीला के रूप में दर्शाया गया है, न कि कोई सामान्य चोरी। वह चुपके से आता है, ताले तोड़ता है, मटकियाँ खाली कर देता है और फिर मुस्कुराते हुए आंखों ही आंखों में सारी शरारत स्वीकार कर लेता है। इस भजन में श्रीकृष्ण की अलौकिक बाल छवि के साथ-साथ उनके अद्भुत प्रेम, ममता और लीलामयी स्वरूप की अभिव्यक्ति बड़े ही सुंदर शब्दों में की गई है। यह भजन भक्तों को न सिर्फ भक्ति में डुबोता है, बल्कि कृष्ण के बालरूप की मधुर झांकी भी प्रस्तुत करता है। ऐसी रचना निश्चित रूप से किसी अनुभवी और भावुक भजनकार की कलम से निकली प्रतीत होती है, जिसने श्रीकृष्ण की लीलाओं को हृदय से अनुभव किया है।