तेरे जैसा राम भक्त
तेरे जैसा राम भक्त कोई हुआ न होगा मतवाला,
एक जरा सी बात पे तूने सीना फाड़ दिखा डाला,
रतन जड़ित हीरो का हार जब लंका पती ने नजर किया,
राम ने जाना आभूषण है सीता जी की और किया,
सीता ने हनुमत को दे दिया,इसे पेहन मेरे लाला,
एक जरा सी बात पे तूने सीना फाड़ दिखा डाला,
हार हाथ में लेजर हनुमत घुमा फिरा कर देख रहे,
नहीं समज में जब आया तो तोड़ तोड़ कर फेंक रहे,
लंका पति मन में पछताया पड़ा है बंदर से पाला,
एक जरा सी बात पे तूने सीना फाड़ दिखा डाला,
हाथ जोड़ कर हनुमत बोले मुझे क्या है कीमत से काम,
मेरे काम की चीज वही है जिसमे बसते सीता राम,
राम नजर ना आये इस में यु बोले अंजनी लाला.
एक जरा सी बात पे तूने सीना फाड़ दिखा डाला,
इतनी बात सुनी हनुमत की बोल उठा लंका वाला,
तेरे में क्या राम वसे है भरी सबा में कह डाला,
चीर के सीना हनुमत ने श्री राम का दर्श करा डाला,
एक जरा सी बात पे तूने सीना फाड़ दिखा डाला,
श्रेणी : राम भजन
तेरे जैसा राम भक्त कोई हुआ न होगा मतवाला । सीना फाड़ दिखा डाला । मुकेश बागड़ा | Best Hanuman Bhajan
"तेरे जैसा राम भक्त कोई हुआ न होगा मतवाला" — यह भजन एक अत्यंत भावुक और प्रेरणादायक प्रसंग को प्रस्तुत करता है, जिसमें हनुमान जी की राम भक्ति की पराकाष्ठा को दर्शाया गया है। भजन का प्रत्येक छंद हनुमान जी की निस्वार्थ भक्ति, उनकी शक्ति और उनके हृदय में बसे श्रीराम-सिया के प्रति अटूट प्रेम को उजागर करता है।
भजन की मूल कथा उस प्रसिद्ध प्रसंग से प्रेरित है, जब लंका में सीता माता द्वारा दिया गया हार हनुमान जी को दिया गया। वे हार को उलट-पलटकर देखने लगते हैं, तो लंका के दरबार में उपस्थित लोग उनका मज़ाक उड़ाते हैं। जब हनुमान जी कहते हैं कि वे उस वस्तु को ही मूल्यवान मानते हैं, जिसमें सीता राम निवास करते हों — और हार में जब राम नहीं दिखे, तो उन्होंने उसे तोड़ डाला।
जब सभा में किसी ने हनुमान जी से पूछ लिया कि क्या वास्तव में राम उनके हृदय में वास करते हैं — हनुमान जी ने बिना संकोच सीना फाड़कर अपने हृदय में श्रीराम और सीता माता के दर्शन करवा दिए। यह क्षण भक्ति की चरम सीमा को दर्शाता है — जहाँ प्रेम और विश्वास के लिए कोई भी त्याग छोटा नहीं।
यह भजन, सिर्फ एक कथा नहीं, बल्कि रामभक्त हनुमान की चरम भक्ति और निष्ठा का प्रतीक है। इसकी भावनाएं भक्तों के मन में भक्ति की लहर पैदा करती हैं। भजन यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति में तर्क नहीं, समर्पण होता है। और हनुमान जी का समर्पण इतना महान था कि उन्होंने प्रभु राम के लिए अपने शरीर की भी परवाह नहीं की।
भजनकार ने जिस तरह से शब्दों के माध्यम से दृश्य को जीवंत किया है, वह अत्यंत सराहनीय है। भक्ति रस में डूबा हुआ यह भजन हनुमान भक्तों के हृदय में स्थायी स्थान बना लेता है।