भोले जी बुलाए चल चल रे सजनवा
भोले जी बुलाये चल,
चल रे सजनवा …2
भोले जी बुलाये चल,
चल रे सजनवा,
चल वैद्यनाथ धाम,
शिव जी रहे है पुकार,
दर्शन पाएंगे ..2
वह की है गौरी,
ऊँची नीची रे डगरिया ..2
भये कठिन सफर जहा,
बाबा का है दर,
पाँव पहात जायेंगे ….2
भोले जी बुलाये चल,
चल रे सजनवा,
भोले जी बुलाये ….
भोले नाथ का संदेसा आया,
ठंडी हवाओ के संग हो,
छले पद जायेंगे पैरों में,
दुखने लगेगा मेरा अंग हो …
बाबा ने बुलाया हम क्यों जाये -2
शिव शम्भू हे दर होऊ …
वह की है गौरी,
ऊँची नीची रे डगरिया ..2
चल वैद्यनाथ धाम,
शिव जी रहे है पुकार,
दर्शन पाएंगे ..2
भोले जी बुलाये चल,
चल रे सजनवा,
भोले जी बुलाये …
हो … हो ….
हो ….हो ….
इतने दरबारी जाते है,
शिव के दर्शन पाए हो …
दिप धुप कर अपने घर ही,
बाबा के गुन गए हो ….
वही जाके देखे हम,
भोले की डगरिया ..2
जाहि माँ गंगा की धमहो ..
वह की है गौरी,
ऊँची नीची रे डगरिया ..2
भये कठिन सफर जहा,
बाबा का है दर,
पाँव पहात जायेंगे ….2
भोले जी बुलाये चल,
चल रे सजनवा,
भोले जी बुलाये ….
होते है वो किस्मत वाले,
बाबा जिनको बुलाये हो,
ठीक कहा है तुमने सजनी,
मेरे समझ में आये हो …
जल्दी कर लो अब तयारी ..2
जाना बैधनाथ धाम हो …
शिव धाम जाये,
जेक दर्शन पाए ..2
करते बोलो बम बम,
जाये बाबा धाम हम,
दर्शन पाएंगे हो …
भोले जी बुलाये चल,
चल रे सजनवा …2
भोले जी बुलाये चल,
चल रे सजनवा,
चल वैद्यनाथ धाम,
शिव जी रहे है पुकार.
दर्शन पाएंगे ..2
भोले जी बुलाये चल,
चल रे सजनवा …2
भोले जी बुलाये चल,
चल रे सजनवा …2
भोले जी बुलाये ….
श्रेणी : शिव भजन

"भोले जी बुलाए चल चल रे सजनवा" – यह भजन एक अत्यंत भावपूर्ण और प्रेरणादायक यात्रा का आह्वान है, जो भक्तों को वैद्यनाथ धाम की ओर खींचता है। इस रचना में श्रद्धा, उत्साह, भक्ति और आध्यात्मिक उत्सव का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
भजन की शुरुआत ही इस भाव के साथ होती है कि भोलेनाथ स्वयं अपने भक्तों को पुकार रहे हैं, और वे सच्चे प्रेम से बुलावा दे रहे हैं – "चल वैद्यनाथ धाम"। यह सिर्फ एक तीर्थ यात्रा नहीं, बल्कि मन और आत्मा की यात्रा है, जो शिव जी के दर्शन के लिए प्रेरित करती है।
इस भजन में गौरी की भूमि, ऊँची-नीची पगडंडियाँ, और कठिन सफर का चित्रण करते हुए यह बताया गया है कि मार्ग चाहे जितना भी कठिन हो, जब मंज़िल बाबा का दरबार हो, तो हर कष्ट सहज बन जाता है।
"छाले पद जाएँगे पैरों में, दुखने लगेगा मेरा अंग" – यह पंक्तियाँ उस शारीरिक तपस्या का बखान करती हैं जो सच्चा भक्त भोलेनाथ के दर्शन हेतु सहर्ष स्वीकार करता है। लेकिन जब बुलावा भोलेनाथ का हो, तो शरीर की पीड़ा भी भक्ति में आनंदित हो जाती है।
भजन आगे कहता है कि जो बाबा के दर्शन करते हैं, वे सौभाग्यशाली हैं, और जो घर में ही दीप-धूप कर उनकी स्तुति करते हैं, वे भी पुण्य कमा रहे हैं – लेकिन असली अनुभूति तो तब है जब कोई स्वयं जाकर बाबा की डगर पर चलकर उनके दरबार में हाजिरी लगाता है।