जो भजते मुझे भाव से मैं उनका ही बन जाता लिरिक्स Jo Bhajte Mujhe Bhaav Se Mein Unka Hi Ban Jata Lyrics

जो भजते मुझे भाव से मैं उनका ही बन जाता



जो भजते मुझे भाव से, मैं उनका ही बन जाता।

बिना भाव से खूब पुकारे, कभी नहीं मैं आता।
सुन टेर भक्त की, मुझ से रहा न जाता॥1॥

शुद्ध हृदय हो अनन्य मन से, मेरा ध्यान लगाता।
उनके सारे योग क्षेम को, मैं ही स्वयं चलाता॥ 2 ॥

सब कुछ करदें भेंट भाव विन, मैं नहीं नजर उठाता।
करता मैं स्वीकार प्रेम से, जो एक पुष्प चढ़ाता॥ 3 ॥

मुझे नहीं परवाह वस्त्र की, नहीं अन्न-धन चाहता।
जो मेरा बन गया हृदय से, मैं उनको अपनाता॥4॥

कैसा भी दोषी हो मेरा, मैं नहिं कभी रिसाता।
जो करता अपराध भक्त का, मुझको नहिं सुहाता॥5॥

जो मेरे शरणागत आवे, आवागमन मिटाता।
"भागीरथ" आश्रयले हरिका, क्यों इतउत भटकाता॥6॥



श्रेणी : कृष्ण भजन

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"जो भजते मुझे भाव से, मैं उनका ही बन जाता" यह भजन एक अत्यंत गूढ़ और आत्मीय संदेश लिए हुए है, जो भगवान श्रीकृष्ण की करुणा, सरलता और भक्तवत्सलता को गहराई से प्रकट करता है। यह रचना भक्त और भगवान के बीच की उस अनोखी आत्मिक डोर को दर्शाती है, जहाँ भक्ति भाव ही सर्वोपरि है – न धन, न वस्त्र, न बाहरी पूजा।

इस भजन की प्रत्येक पंक्ति श्रीकृष्ण के उस उदात्त रूप की व्याख्या करती है, जो केवल भावनाओं में बसे होते हैं। “जो भजते मुझे भाव से…” यह उद्घोष बताता है कि भगवान को पाने के लिए किसी वैभव या बाहरी साधन की आवश्यकता नहीं, बल्कि केवल शुद्ध, निष्कपट, और अनन्य प्रेम चाहिए।

जहाँ भाव नहीं होता, वहाँ चाहे कितना भी कोई पुकारे, श्रीकृष्ण स्वयं स्वीकार करते हैं कि वे नहीं आते। लेकिन जब एक भक्त हृदय से टेरता है, तो वे रोक नहीं पाते और स्वयं उसके जीवन में प्रकट हो जाते हैं।

भजन में आगे बताया गया है कि जो भक्त अनन्य होकर भगवान का ध्यान करता है, उसके योग-क्षेम (अर्थात् आवश्यकता और सुरक्षा) की जिम्मेदारी स्वयं भगवान लेते हैं। इसका अर्थ यह है कि भक्त को कुछ सोचने की जरूरत नहीं रहती – श्रीकृष्ण स्वयं उसके लिए हर मार्ग प्रशस्त करते हैं।

एक पुष्प भी अगर प्रेम से अर्पित किया जाए, तो भगवान उसे सहर्ष स्वीकार करते हैं। लेकिन अगर कोई केवल दिखावे या पदार्थ से पूजा करे, तो वह उन्हें नहीं भाता। यह संकेत है कि प्रेम का एक कण भी अनमोल है, जो भगवान को आकर्षित कर सकता है।

इस भजन की पंक्तियाँ यह भी स्पष्ट करती हैं कि श्रीकृष्ण किसी भक्त के दोषों से कभी क्रोधित नहीं होते। बल्कि जो उनके भक्तों को दुःख देता है, वह भगवान को अप्रिय होता है। यह उनका भक्तों के प्रति रक्षक स्वरूप दर्शाता है।

Harshit Jain

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