श्रीराधाष्टकं हिंदी भजन
(अनन्तश्रीविभूषित जगद्गुरु
श्रीनिम्बार्काचार्यपीठाधीश्वर
श्रीराधासर्वेश्वरशरणदेवाचार्य "श्री श्रीजी महाराज" द्वारा विरचित)
उपासनीयं शुकनारदाद्यै:
सञ्चिन्तनीयं व्रजगोपगोभि:।
संसेवनीयं परित: सखीभि:
स्मरामि राधापदकञ्जयुग्मम्।।
श्रीमाधवेनापि सदाsभिवंद्यं
सुकोमलं रासरसाभिपूर्णम्।
देदीप्यमानं सततं निकुञ्जे
स्मरामि राधापदकञ्जयुग्मम्।।
कलिन्दजातीरविहारलोलं
कृपार्णवं सर्वसुखैकराशिम्।
निजाsश्रितानां हृदि भासमानं
स्मरामि राधापदकञ्जयुग्मम्।।
ब्रह्मादिदैवरनुमृग्यमाणं
वेदादिशास्त्रैरूपगीयमानम्।
रासस्थलीष्वद्भुतलास्यहृद्यं
स्मरामि राधापदकञ्जयुग्मम्।।
अनन्तसौन्दर्यगुणैककोषं
गौराब्जवर्णं कमनीयरूप्।
काश्मीररागैरनुलिप्यमानं
स्मरामि राधापदकञ्जयुग्मम्।।
वृन्दावने नित्यनिकुञ्जभागे
कदम्बजम्बूविटपान्तराले।
सार्द्धं मुकुन्देन विराजमानं
स्मरामि राधापदकञ्जयुग्मम्।।
कोटीन्दुलावण्य-प्रकाशराशिं
श्रीखण्डपङ्कांकित दर्शनीयम्।
भक्तेप्सित-स्वाश्रयदानशीलं
स्मरामि राधापदकञ्जयुग्मम्।।
श्रीरङ्गदेवी-ललिता-विशाखा
हरिप्रियाद्यङ्गसखीसमूहै:।
आराध्यमानं नवकुञ्जमध्ये
स्मरामि राधापदकञ्जयुग्मम्।।
श्रीराधिकाष्टकं स्तोत्रं पराभक्तिप्रदायकम्।
राधासर्वेश्वर-प्रीत्यै तच्छरणेन निर्मितम्।।
श्रेणी : कृष्ण भजन

श्रीराधाष्टकं एक अत्यंत दिव्य, भावनापूर्ण और आध्यात्मिक भजन है, जिसकी रचना अनन्तश्रीविभूषित जगद्गुरु श्रीनिम्बार्काचार्यपीठाधीश्वर, श्रीराधासर्वेश्वरशरणदेवाचार्य "श्री श्रीजी महाराज" ने की है। यह स्तोत्र श्रीराधा रानी के चरणों में समर्पित उस दिव्य भक्ति का स्वरूप है, जो भक्त के अंत:करण से प्रस्फुटित होता है।
भजन में श्रीराधा जी के चरण कमलों का स्मरण करते हुए, उनके रूप, लावण्य, कृपा, माधुर्य और उनके आध्यात्मिक सौंदर्य का अत्यंत मधुर चित्रण किया गया है। इसमें बताया गया है कि जिन राधारानी की उपासना स्वयं शुकदेव, नारद और ब्रह्मा जैसे महर्षि करते हैं, जिनके चरणों की सेवा गोपियाँ और सखियाँ करती हैं, उन श्रीराधा जी का स्मरण करना ही सच्ची भक्ति है।
यह स्तोत्र रासलीला, निकुंज लीलाओं, वृन्दावन की रमणीयता, श्रीकृष्ण के साथ उनके प्रेम, और उनके अलौकिक स्वरूप को एक भक्तिपूर्ण भाव से प्रस्तुत करता है। श्रीराधा का सौन्दर्य करोड़ों चंद्रमाओं से भी अधिक उज्ज्वल बताया गया है और उनके चरण कमलों को हृदय में बसाने वाला भक्त निश्चित ही पराभक्ति और अनुग्रह को प्राप्त करता है।
श्रीराधिकाष्टकं न केवल एक स्तोत्र है, बल्कि यह राधाकृष्ण प्रेम की उस पराकाष्ठा का प्रतीक है, जिसे शब्दों में पिरोकर, भक्ति रस में डुबो दिया गया है। यह भजन राधा रानी की महिमा का साक्षात दर्शन कराता है और भक्त के मन में उनके प्रति अनन्य प्रेम एवं समर्पण की भावना भर देता है।