वन को जब जाना भगवान
वन को जब जाना भगवान
पहले हमें विदा कर जाना,
मेरे टीके पर ओम लिखवाना,
मेरी बिंदिया पर राम लिखवाना,
फैंसी लिखत लिखो भगवान
जैसे अमरबेल की छाया,
वन को जब जाना भगवान.....
मेरे हरवा पर ओम लिखवाना,
मेरी माला पर राम लिखवाना,
ऐसी लिखत लिखो भगवान
जैसे अमरबेल की छाया,
वन को जब जाना भगवान....
मेरी चूड़ियों पर ओम लिखवाना,
मेरी मेहंदी पर राम लिखवाना,
ऐसी लिखत लिखो भगवान
जैसे अमरबेल की छाया,
वन को जब जाना भगवान....
मेरी पायल पर ओम लिखवाना,
मेरी महावर पर राम लिखवाना,
ऐसी लिखत लिखो भगवान
जैसे अमरबेल की छाया,
वन को जब जाना भगवान....
मेरे लहंगा पर ओम लिखवाना,
मेरी चुनरी पर राम लिखो आना,
ऐसी लिखत लिखो भगवान
जैसे अमरबेल की छाया,
वन को जब जाना भगवान....
श्रेणी : राम भजन

यह भजन एक अत्यंत भावनात्मक और सुंदर भावनाओं से परिपूर्ण स्त्री का प्रेमपूर्ण निवेदन है, जिसमें वह भगवान राम से अनुरोध करती है कि जब वह वन को प्रस्थान करें, तो उससे पहले उसे विदा कर दें — लेकिन वह विदाई केवल एक रीति नहीं हो, बल्कि उसमें गहरे भाव और श्रद्धा की अमिट छाप हो।
"वन को जब जाना भगवान" भजन में भक्ति, प्रेम और आत्मसमर्पण की अनूठी छवि उभरती है। स्त्री की भावनाएं इतनी पवित्र हैं कि वह चाहती है उसके शरीर के हर एक श्रृंगार पर 'राम' और 'ॐ' अंकित हों — उसकी बिंदी, चूड़ियाँ, पायल, मेहंदी, लहंगा, चुनरी — सब पर ईश्वर का नाम लिखा हो। वह चाहती है कि उसकी हर पहचान, हर सौंदर्य, हर स्मृति पर राम का नाम ऐसा छाया रहे जैसे अमरबेल की छाया, जो सदा के लिए अटूट और अमर होती है।
इस भजन को जब कोई गाता है या सुनता है, तो मन सहज ही भक्ति और भावनाओं से भर उठता है। यह भजन न केवल भगवान राम की महिमा गाता है, बल्कि भक्त और भगवान के बीच एक पवित्र संबंध का प्रतीक बन जाता है — जिसमें त्याग है, समर्पण है, और प्रेम की चरम सीमा है।
यह भजन रामभक्ति की चरम सीमा को दर्शाता है और यह स्पष्ट करता है कि भक्त का भगवान के प्रति प्रेम केवल शब्दों तक सीमित नहीं है, बल्कि वह अपने जीवन के हर तत्व में प्रभु को बसाना चाहता है।