कान्हा रोज रोज तुमको सजाता रहूँ
कान्हा रोज रोज तुमको सजाता रहूँ और मनाता रहूँ,
पर भजन में कभी कुछ कमी हो नहीं ।
दुग्ध-दधि-जल-शहद से नहलाया करूँ,
रेशमी वस्त्र सुन्दर पहनाया करूँ ।
तेरे नयनों में कजरा लगाता रहूँ, गीत गाता रहूँ,
पर भजन में कभी कुछ कमी हो नहीं ॥ कान्हा....
कुंकुम-केसर के चन्दन लगाऊँ तुझे,
पुष्पमाला मैं सुन्दर पहनाऊँ तुझे ।
पग में पैजनियाँ सुन्दर पहनाता रहूँ और नचाता रहूँ,
पर भजन में कभी कुछ कमी हो नहीं ॥ कान्हा....
प्यार से सुन्दर व्यंजन खिलाऊँ तुझे,
दुग्ध में मिश्री-केसर पिलाऊँ तुझे ।
तेरे सेवा में तन-मन लगाता रहूँ, मुस्कुराता रहूँ,
पर भजन में कभी कुछ कमी हो नहीं || कान्हा....
साथ में गाके लोरी सुलाऊँ तुझे,
प्यारा-सा गीत गा के जगाऊँ तुझे ।
कान्त सपनों में भी मैं सजाता रहूँ और मनाता रहूँ,
पर भजन में कभी कुछ कमी हो नहीं ॥ कान्हा.....
भजन रचना : प• पू• श्री श्रीकान्त दास जी महाराज
स्वर : सियाराम जी
श्रेणी : कृष्ण भजन
श्याम भजन :कान्हा रोज रोज तुमको सजाता रहूँ!!दासानुदास श्रीकान्त दास जी महाराज!!स्वरःसियाराम जी ।
भक्ति रस में डूबे भक्त की अभिलाषा होती है कि वह अपने आराध्य श्रीकृष्ण की सेवा में कोई भी कमी न छोड़े। "कान्हा रोज-रोज तुमको सजाता रहूँ" भजन इसी भक्तिभाव को प्रकट करता है, जिसमें कान्हा की सेवा, सजावट, भोग और आराधना का मनोहारी चित्रण किया गया है।
इस भजन में भक्त का प्रेम स्पष्ट झलकता है—वह श्रीकृष्ण को नित्य स्नान कराकर, उन्हें सुंदर वस्त्र पहनाकर, उनके नेत्रों में काजल लगाकर और भावपूर्ण गीत गाकर उनकी सेवा करना चाहता है। साथ ही, वह कामना करता है कि उसकी भक्ति में कभी कोई कमी न आए।
पुष्पमालाएँ, चंदन, केसर, पैजनियाँ और लोरी जैसे विभिन्न साधनों से श्रीकृष्ण की सेवा का वर्णन इस भजन को और भी रमणीय बना देता है। यह केवल एक गीत नहीं, बल्कि भक्त के मन की वह गहराई है, जहाँ सेवा और प्रेम का अनंत प्रवाह निरंतर बहता रहता है।
पं. पू. श्री श्रीकांत दास जी महाराज द्वारा रचित और सियाराम जी के मधुर स्वर में प्रस्तुत यह भजन भक्तों के हृदय को कृष्णमय कर देता है। इसका श्रवण करते ही मन में श्रीकृष्ण की सेवा-भावना उमड़ पड़ती है और प्रेम का सागर लहराने लगता है।