तेरी गलियों काहूं आशिक़ तू एक नगीना है, teri galiyo ka hun aashik

तेरी गलियों काहूं आशिक़ तू एक नगीना है



तेरी गलियों काहूं आशिक़,
तू एक नगीना है|

तेरी नजरों से ये मुझे जाम पीना है |
तेरी नजरों से यह मुझे जाम पीना है||
तेरी गलियों का हूं आशिक |
तू एक नगीना है ||
तेरे बिन एक पाल मैं जी नहीं सकता |
यह जुदाई यह दर्द को मैं पी नहीं सकता |
तेरी गलियों में सांवरे मरना जीना है||

तेरी गलियों का हूं आशिक़ |
तू एक नगीना ||
तेरी नजरों से यह जान मुझे पीना है |
तेरी नजरों से यह जान मुझे पीना है||
तेरी गलियों का आशिक |
तू एक नगीना है||
मेरे हमदम मेरे साथी मेरे साथी |
हमदम तेरी खुशी मेरी खुशी ||
तेरा गम मेरा गम |
तू लहू है तू जान है ||
तू ही पसीना है |
तेरे सिवा कोई दूसरा नहीं मेरा |
छोड़ू नहीं ये कस के पकड़ा दमन तेरा ,
तू ही मक्का तू ही कबा तू ही मदीना है ||

तेरी गलियों का हूं आशिक |
तू एक नगीना है |

दिया है दर्द जो तुमने तुम्ही दवा देना |
कहीं ना कहीं कभी ना कभी तेरा दर्शन होगा |
तेरी गलियों में सांवरे मारना जीना है ||

तेरी गलियों का हूं आशिक |
तू एक नगीना है||



श्रेणी : कृष्ण भजन



#Bhjan👉तेरी गलियों का हूं आशिक||तू एक नगीना है|| #lyrics

"तेरी गलियों का हूं आशिक, तू एक नगीना है" — यह श्रीकृष्ण भजन प्रेम, समर्पण और विरह की भावनाओं से ओत-प्रोत एक अत्यंत मधुर रचना है, जिसमें भक्त श्रीकृष्ण को अपने प्रेम का केन्द्र मानकर उनके चरणों में खुद को पूर्णतः अर्पित कर देता है। इस भजन की सबसे खास बात यह है कि इसमें इश्क़ और भक्ति का मेल है, जो श्रीकृष्ण की लीला में बार-बार देखने को मिलता है।

भजन की शुरुआत ही इस भाव के साथ होती है कि "तेरी गलियों का हूं आशिक, तू एक नगीना है," — यह पंक्ति श्रीकृष्ण के दिव्य स्वरूप को बयां करती है, जैसे वो समस्त संसार के आकर्षणों से बढ़कर, एक अमूल्य रत्न हों। और जब भक्त कहता है "तेरी नजरों से ये मुझे जाम पीना है," तो ये शब्द आध्यात्मिक मदहोशी का प्रतीक बन जाते हैं — कृष्ण के प्रेम में डूबने की तड़प।

आगे चलकर यह भजन विरह की वेदना भी छूता है — "तेरे बिन एक पल मैं जी नहीं सकता, यह जुदाई, यह दर्द को मैं पी नहीं सकता," — इन पंक्तियों में राधा-कृष्ण के प्रेम की झलक मिलती है, जहाँ विरह भी पूजा बन जाता है।

भजन का भाव केवल व्यक्तिगत प्रेम में नहीं रुकता, बल्कि उसे एक दैविक ऊँचाई दी जाती है — "तू ही मक्का, तू ही काबा, तू ही मदीना है," — यह पंक्ति श्रीकृष्ण को सर्वधर्म समभाव का प्रतीक बनाती है। भक्त उन्हें सिर्फ हिन्दू आस्था का नहीं, बल्कि समस्त विश्व की चेतना का स्रोत मानता है।

अंततः जब गायक कहता है "तेरी गलियों में सांवरे मरना जीना है," तो यह पूर्ण समर्पण का भाव है। श्रीकृष्ण के प्रेम में भक्त इस हद तक डूब जाता है कि उसे अपना जीवन भी उसी गली में समाप्त कर देना स्वीकार है, जहाँ कृष्ण की चरण-धूल है।

यह भजन भावनाओं का तूफान है, जो हर उस हृदय को छू जाता है जिसने कभी भी श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम, भक्ति या तड़प महसूस की हो। इसकी पंक्तियाँ न केवल दिल को छूती हैं, बल्कि आत्मा को श्रीकृष्ण के प्रेम में भीगने का अवसर देती हैं।

Harshit Jain

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