फतेहपुर में ठाकुरजी को डंको बाजै
( तर्ज - अंजन की सीटी में म्हारो मन )
फतेहपुर में ठाकुर जी को डंकों बाजै,
आं कै उत्सव में देखो सारो गांव नाचै,
ई कलयुग में ठाकुर जी की, भोत बड़ी संकळाई,
बड़ी से बड़ी बीमारी बाबो, झाड़ा से सल्टाई,
अठै 56 भोग प्रसाद, चँवर को झाड़ो लागै..
फतेहपुर में ठाकुर जी को डंकों बाजै....
लक्ष्मीनाथ बाबा का दर्शण, बड़भागी ही पावै,
साधू संतां की नगरी में, किस्मतहाळा आवै,
म्हारा ठाकुरजी का पर्चा, सारे जग में गाजै..
फतेहपुर में ठाकुर जी को डंकों बाजै
नाच कुदतो मस्ती में जो ई दरबार में आवै,
उणकी गाडी सरपट भागै, बाबो पार लगावै,
अठै शिवपरिवार के सागै, हनुमान विराजै..
फतेहपुर में ठाकुर जी को डंकों बाजै....
भग्तां के संग अम्बरीष मांगे, हर वैसाख बुलाज्यो,
नगरसेठ थारी नगरी में, हाथ पकड़ (की) घूमाज्यो,
थारे संग चालण को, म्हाने भी यो मोको लागै..
फतेहपुर में ठाकुर जी को डंकों बाजै....
लिरिक्स : अम्बरीष कुमार मुंबई
श्रेणी : कृष्ण भजन
लक्ष्मीनाथ बाबा भजन | फतेहपुर में ठाकुरजी को डंको बाजे LAXMINATH BABA BHAJAN #SudarshanKumar
“फतेहपुर में ठाकुरजी को डंकों बाजै” एक जीवंत और रंगीन कृष्ण भजन है, जो फतेहपुर क्षेत्र के धार्मिक उत्सवों और भक्ति भाव को बड़े ही आत्मीय और लोकजीवन के रंग में प्रस्तुत करता है। इस भजन का तर्ज़ "अंजन की सीटी में म्हारो मन" पर आधारित है, जो इसे स्थानीय संगीत और संस्कृति से जोड़ता है।
भजन में ठाकुरजी के प्रति गहरा सम्मान और श्रद्धा झलकती है, जहां डंकों की गूंज पूरे गांव में गूंजती है और पूरे उत्सव में गांव के लोग नाच-गाने में मग्न होते हैं। यह भजन कालयुग में भी ठाकुरजी की महिमा और उनकी शक्तियों का बखान करता है, जो बड़ी से बड़ी बीमारियों को दूर करने वाले हैं।
यहां 56 भोग प्रसाद और चँवर के झाड़ों की पूजा की बात कर भक्तों की श्रद्धा का जीवंत चित्र खिंचता है। साथ ही, लक्ष्मीनाथ बाबा के दर्शन और साधु संतों की नगरी का वर्णन इस भजन को और भी आध्यात्मिक आयाम देता है।
भजन के माध्यम से भक्तों की मस्ती, नृत्य, और शिव परिवार तथा हनुमान जी की उपस्थिति का जिक्र इसे पारंपरिक धार्मिक उत्सवों के साथ जोड़ता है। अंत में, भक्तों की मनोकामनाओं और नगरसेठ के संग भक्ति भाव की महत्ता को भी बड़ी सहजता से दर्शाया गया है।
अम्बरीष कुमार मुंबई द्वारा रचित और गाया यह भजन फतेहपुर के धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन की सुंदर झलक है, जो कृष्ण भक्तों के दिलों में गहरी छाप छोड़ता है और भक्तिभाव से सराबोर कर देता है। यह भजन न केवल उत्सव का आनंद बढ़ाता है, बल्कि क्षेत्रीय सांस्कृतिक पहचान को भी मजबूती से दर्शाता है।