म्हानै सूरजगढ़ को निशान
म्हानै सूरजगढ़ को निशान भाया प्यारो लागे रे,
म्हानै सूरजगढ़ को.....
शीर्ष पे थारे मोरपंख रे मोरपंख पे कमर बन्धा,
बिजणी भारे छम छम नाचे रुतबो न्यारो रे,
प्यारो लागे रे......
सूरज चाँद सितारे चमंक गऊ माता भी दुध देरी,
बीच मे लीले घोड़े पे श्याम हमारो रे,
प्यारो लागे रे.......
डोरी पकड़ले दीनू इन्दोरिया रामेश्वर भंगत कहयो रे,
जे डोरी तू नाही छोड़ी तो श्याम तिहारो रे,
प्यारो लागे रे........
श्रेणी : खाटू श्याम भजन
Shyam ki dunia diwani (surajgarh ka nishan)
म्हानै सूरजगढ़ को निशान" एक अत्यंत हृदयस्पर्शी और भक्तिभाव से भरपूर खाटू श्याम भजन है, जो श्याम बाबा की लीला, वैभव और उनके दिव्य स्वरूप का सुंदर वर्णन करता है। इस भजन में सूरजगढ़ से जुड़ा "निशान" न केवल एक धार्मिक प्रतीक है, बल्कि यह भक्तों के विश्वास और प्रेम का केंद्र भी है। भजन की हर पंक्ति में श्याम बाबा की छवि को बड़े भावुक और रमणीय अंदाज में उकेरा गया है।
इस भजन की शुरुआत में बताया गया है कि "सूरजगढ़ का निशान" मन को कितना प्रिय और आकर्षक लगता है। श्याम बाबा के सिर पर विराजमान मोरपंख, कमर में बंधा कमरबंध, और उनके श्रृंगार की हर एक झलक — सब कुछ भजन में जीवंत होता दिखता है। साथ ही, उनके घोड़े पर सवार होकर लीला रचाने वाली छवि भी इतनी मोहक है कि सूरज, चाँद और सितारे भी उनके तेज में फीके लगते हैं। गौ माता का दूध देना और श्याम का लीला रूप इस बात को दर्शाता है कि प्रकृति भी उनके स्वागत में अपना सब कुछ अर्पण करती है।
भजन के अंत में जब डोरी पकड़ने की बात होती है, तो यह केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि भक्त और भगवान के बीच अटूट संबंध की पुष्टि करता है। डोरी पकड़ना यहाँ समर्पण और विश्वास का प्रतीक है, और यह भाव आता है कि जिसने एक बार श्याम की डोरी थाम ली, उसके जीवन में कभी अधूरापन नहीं रहता।
यह भजन भक्तों को खाटू श्याम के प्रेम में डुबो देता है, और "सूरजगढ़ का निशान" उनके लिए भक्ति और भावनाओं का संगम बन जाता है। "श्याम की दुनिया दीवानी" इस शीर्षक के तहत यह भजन एक अनोखा अनुभव देता है, जिसमें श्याम बाबा की भव्यता, सादगी और अपनापन एक साथ महसूस होता है।