मुझे छोड़ के न जाओ श्याम
मुझे छोड़ के न जाओ श्याम, पय्या पडू,
मुझे छोड़ के न जाओ श्याम, पय्या पडू,
रिश्ते सारे छोड़ के हूँ आई, बंधन सारे तोड़ के हूँ आई,
रिश्ते सारे छोड़ के हूँ आई, बंधन सारे तोड़ के हूँ आई,
अब भेजो ना वापस श्याम, तोरी पय्या पडू,
अब भेजो ना वापस श्याम, तोरी पय्या पडू,
मुझे छोड़ के न जाओ श्याम, पय्या पडू,
मुझे छोड़ के न जाओ श्याम, पय्या पडू,
ताने मारेगी, दुनिया सारी, जो तूने मुझको, छोड़ा मुरारी,
ताने मारेगी, दुनिया सारी, जो तूने मुझको, छोड़ा मुरारी,
मुझे छोडो ना ऐसे श्याम, तोरी पय्या पडू,
मुझे छोडो ना ऐसे श्याम, तोरी पय्या पडू,
मुझे छोड़ के न जाओ श्याम,पय्या पडू,
मुझे छोड़ के न जाओ श्याम, पय्या पडू,
किसके भरोसे जीवन बिताऊ, किसको अपनी व्यथा सुनाऊ,
किसके भरोसे जीवन बिताऊ, किसको अपनी व्यथा सुनाऊ,
मेरी विनती सुन लो श्याम, तोरी पय्या पडू,
मेरी विनती सुन लो श्याम, तोरी पय्या पडू,
मुझे छोड़ के न जाओ श्याम, पय्या पडू,
मुझे छोड़ के न जाओ श्याम, पय्या पडू,
Lyri cs - Jay Prakash Verma, Indore
श्रेणी : कृष्ण भजन
मुझे छोड़ के न जाओ श्याम ।। #bankebihari #shyam #vrindavan #radharani #radhe #krishna #radheradhe
"मुझे छोड़ के न जाओ श्याम, पय्या पडू" एक अत्यंत भावुक और आत्मा को झकझोर देने वाला कृष्ण भजन है, जिसे जय प्रकाश वर्मा (इंदौर) ने लिखा है। यह भजन उस सच्चे प्रेमी या भक्त की पुकार है, जिसने अपने जीवन के सारे रिश्ते-नाते, संसारिक बंधनों को त्याग कर केवल श्याम के चरणों में स्थान लिया है।
इस भजन में भक्त की पीड़ा, उसका समर्पण और उसकी व्याकुलता इतने सुंदर ढंग से व्यक्त की गई है कि हर पंक्ति सीधे हृदय को छू जाती है। "रिश्ते सारे छोड़ के हूँ आई, बंधन सारे तोड़ के हूँ आई" — इन शब्दों में एक स्त्री या भक्त का सम्पूर्ण समर्पण झलकता है। वह श्याम से विनती करती है कि अब वह उसे वापस संसार में न भेजें, क्योंकि अब जीवन का कोई और आधार नहीं बचा है।
"ताने मारेगी दुनिया सारी, जो तूने मुझको छोड़ा मुरारी" — ये पंक्तियाँ उस समाज की कठोरता को दर्शाती हैं जहाँ ईश्वर से जुड़ाव भी तिरस्कार का कारण बन सकता है, परंतु फिर भी भक्त ने सब त्याग दिया है। यही तो भक्ति की चरम अवस्था है — जहाँ सिर्फ एक श्याम ही शेष रह जाते हैं।
भजन के अंत में जब वह कहती है, "किसके भरोसे जीवन बिताऊँ, किसको अपनी व्यथा सुनाऊँ", तब उसका असहाय मन जैसे पूरी तरह प्रभु के सामने नतमस्तक हो जाता है। "तोरी पय्या पडू" — यह शब्द केवल झुकने या गिरने का नहीं, बल्कि आत्मसमर्पण का प्रतीक है।
यह भजन न सिर्फ श्याम प्रेमियों को भीतर तक छूता है, बल्कि एक गहन भक्ति और ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास की मिसाल भी पेश करता है। जय प्रकाश वर्मा ने इसमें जो भावनाएं पिरोई हैं, वो इसे एक अमूल्य भजन बना देती हैं जो हर कृष्ण भक्त के मन में शांति और समर्पण की लौ जलाता है।