तू फिरा अपनी मोरछड़ी | tu fira apni morchadi

तू फिरा अपनी मोरछड़ी



तर्ज: जिंदगी की न टूटे लड़ी

श्याम सर पे मुसीबत पड़ी,
तू फिरा दे, तू फिरा अपनी मोरछड़ी,
खाटू वाले उम्मीदे न तोड़ो,
तेरी महिमा सुनी है बड़ी,

इन आँखों के पानी का क्या
यह तो दर-दर पे बह जाते है,
दर्द की तो जुबां ही नही,
कैसे अपनी सुना पाते है ।
आंखों से बहते, बन के लड़ी

बाबा, तेरे बिना, दुख हरे कौन मेरा,

हमने भी अब ये ठाना है श्याम,
खाली न लौट जाएंगे हम
मेरी झोली जो भर जाएगी,
बार-बार भी आएंगे हम
काट दे तू ये दुख की घड़ी ।
तू फिरा दे....

मैं तो दर-दर भटकता फिरू,
श्याम अपनी तरफ मोड़ ले,
प्रीत का कोई नाता मोहन,
दास 'विष्णु' से तू जोड़ ले ,
बांध कर तू, कोई हथकड़ी ।
तू फिरा दे...

लेखक: विष्णु कुमार सोनी, कानपुर



श्रेणी : खाटू श्याम भजन

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यह भजन "तू फिरा अपनी मोरछड़ी" एक अत्यंत मार्मिक और श्रद्धा से भरा हुआ रचना है, जिसे लेखक विष्णु कुमार सोनी (कानपुर) ने अत्यंत भावपूर्ण शैली में लिखा है। यह भजन खाटू श्याम जी से गहरी आत्मीयता और दयाभाव की प्रार्थना करता है, जो भक्तों के दुखों को हरने वाले और मोरछड़ी घुमा कर कृपा बरसाने वाले कहे जाते हैं।

भजन की शुरुआत उस स्थिति से होती है जब जीवन में मुसीबतें सिर पर छा जाती हैं, और भक्त अपने आराध्य से विनती करता है कि—“तू फिरा अपनी मोरछड़ी”। यह सिर्फ एक पंक्ति नहीं, बल्कि उस भरोसे और विश्वास का प्रतीक है जो भक्त को अपने प्रभु पर होता है। श्याम बाबा से विनती है कि वह अपनी कृपा की छांव फिर से बरसा दें, क्योंकि उनकी महिमा सुनने में ही नहीं, अनुभव में भी बहुत बड़ी है।

भजन की पंक्तियाँ जैसे – “इन आँखों के पानी का क्या”, और “दर्द की तो जुबां ही नहीं”, सीधे दिल को छू जाती हैं। यह वह पीड़ा है जिसे शब्दों में व्यक्त करना कठिन है, लेकिन भक्ति में डूबे हुए मन को श्याम के चरणों में रख देने से वह पीड़ा हल्की हो जाती है।

यह भजन श्याम बाबा से एक दृढ़ विश्वास के साथ विनती करता है कि — "हम खाली नहीं लौटेंगे", और यह भी कहता है कि एक बार कृपा बरसी, तो हम बार-बार खाटू आएंगे, क्योंकि यही विश्वास, यही प्रेम, भक्त और भगवान के बीच की डोर को मजबूत करता है।

अंतिम पंक्तियों में रचना और भी गहराई लेती है, जब भक्त कहता है कि — "मैं दर-दर भटकता रहूं, इससे अच्छा है तू मुझे अपनी तरफ मोड़ ले।" यह प्रेम की पराकाष्ठा है, जब भक्त अपने पूरे जीवन को ही प्रभु के हवाले कर देता है।

Harshit Jain

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