चरणों में तेरी आके, मैं निहाल हो गया
चरणों में तेरे आके,मैं निहाल हो गया,
चरणों की रज़ को पाके,मैं निहाल हो गया,
चरणों में....
1. कितनें जन्मों से भटका,ना मिला कोई सहारा,
तेरा सहारा पाके,भव पार हो गया,
चरणों में तेरे आके,मैं निहाल हो गया,
चरणों की रज़ को पाके,मैं निहाल हो गया,
चरणों में....
2. पापो से डर रह था, दुःख में तड़प रहा था,
आया शरणं में तेरी,चरणों से ना हटाना,
चरणों में तेरे आके,मैं निहाल हो गया,
चरणों की रज़ को पाके,मैं निहाल हो गया,
चरणों में....
गुरुवर ने दे दिया है,हरीनाम रस का प्याला,
धसका रहे लुटाता,ये नाम का खज़ाना,
चरणों में तेरे आके,मैं निहाल हो गया,
चरणों की रज़ को पाके,मैं निहाल हो गया,
चरणों में....
बाबा धसका पागल पानीपत,
संपर्कंसुत्र - 7206526000
श्रेणी : कृष्ण भजन

"चरणों में तेरे आके, मैं निहाल हो गया" — यह भजन भक्ति, समर्पण और गुरु कृपा से मिली आध्यात्मिक शांति का एक सुंदर और भावनात्मक चित्रण है। इसे बाबा धसका पागल (पानीपत) जी ने अपनी गहरी श्रद्धा और आत्मिक अनुभूति से रचा है, जिसमें भक्त का हृदय अपने आराध्य के चरणों में पूर्ण रूप से समर्पित हो जाता है।
भजन की पहली पंक्तियाँ ही इस भाव को प्रकट करती हैं कि जब एक भटका हुआ जीव प्रभु के चरणों में पहुँचता है, तो उसे अनंत शांति, आनंद और समाधान की अनुभूति होती है। “चरणों की रज़ को पाके, मैं निहाल हो गया” जैसी पंक्ति, भक्त के विनम्र और भावुक मन की सच्ची अवस्था को प्रकट करती है — जैसे चरणधूलि ही सबसे बड़ा वरदान हो।
भजन के पहले अंतरे में यह बताया गया है कि कितने जन्मों तक भटकाव, अकेलापन और सहारे की तलाश रही, लेकिन जब प्रभु का सहारा मिला, तभी भवसागर पार होने का अनुभव हुआ। यह बात दर्शाती है कि केवल भगवान की शरण ही मोक्ष का मार्ग है।
दूसरे अंतरे में आत्मग्लानि और जीवन के दुखों का वर्णन है — एक ऐसा मन जो पापों से डरा हुआ है, दुख में डूबा हुआ है, और जब वह प्रभु की शरण में आता है, तो यही अरदास करता है कि अब इन चरणों से मत हटाना। यह पंक्ति हर भक्त की अंतरात्मा की पुकार बन जाती है।
भजन का अंतिम अंतरा गुरु महिमा को समर्पित है — जहाँ बताया गया है कि गुरुवर ने हरीनाम रस का प्याला दे दिया है, जो अब जीवन को मधुरता और भक्ति से भर रहा है। यह नाम रूपी खजाना धसका बाबा जैसे संत लुटा रहे हैं, जो आत्मिक जीवन को नयी दिशा देता है।
यह भजन केवल भावों का संगम नहीं, बल्कि प्रेम, भक्ति और आत्मिक अनुभव का जीवंत प्रमाण है। इसे सुनकर और गाकर मन प्रभु के चरणों में स्वतः ही झुक जाता है और अंतर आत्मा गूंज उठती है — "चरणों में तेरे आके, मैं निहाल हो गया..."