कुछ दो या ना दो श्याम, इस श्याम दीवानी को
कुछ दो या ना दो श्याम, इस श्याम दीवानी को,
थोड़ी भक्ति तो दे दो, तुम्हें भजन सुनाने को,
मीरा को दी भक्ति, सबरी को दी भक्ति,
दोनों को दी भक्ति, दोनों ने की भक्ति,
वैसी भक्ति मुझे भी दो, श्याम तुम्हें रिझाने को,
वैसी भक्ति मुझे भी दो, श्याम तुम्हें रिझाने को,
कुछ दो या ना दो श्याम, इस श्याम दीवानी को,
थोड़ी भक्ति तो दे दो, तुम्हें भजन सुनाने को,
सबरी के खाए बेर, कर्मा के खाए भात,
दोनों की खुली किस्मत, दोनों के खुल गए भाग,
मैं भी लाई माखन, श्याम तुम्हें खिलाने को,
मैं भी लाई माखन, श्याम तुम्हें खिलाने को,
कुछ दो या ना दो श्याम, इस श्याम दीवानी को,
थोड़ी भक्ति तो दे दो, तुम्हें भजन सुनाने को,
राधा जी तुम्हें प्यारी, रुक्मण जी तुम्हें प्यारी,
दोनों से प्यार किया, तुमने मेरे श्याम मुरारी,
थोड़ा प्यार मुझे भी दो, जीवन ये बिताने को,
थोड़ा प्यार मुझे भी दो, जीवन ये बिताने को,
कुछ दो या ना दो श्याम, इस श्याम दीवानी को,
थोड़ी भक्ति तो दे दो, तुम्हें भजन सुनाने को,
Lyrics - Jay Prakash Verma, Indore
श्रेणी : कृष्ण भजन
कुछ दो या ना दो श्याम, इस श्याम दीवानी को । #shyam #radhe #bankebihari #krishna #shyambhajan #radha
कुछ दो या ना दो श्याम, इस श्याम दीवानी को" – यह भजन एक सच्चे भक्त की भावनाओं का सजीव चित्रण है, जिसे इंदौर के जय प्रकाश वर्मा जी ने अपनी कोमल और भक्ति-रस से सराबोर लेखनी से रचा है। यह भजन उन प्रेमी भक्तों की आवाज़ है, जिनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य है – श्याम की भक्ति, श्याम का सान्निध्य और उनके चरणों में पूर्ण समर्पण।
भजन की शुरुआत ही एक भावपूर्ण विनती से होती है – "कुछ दो या ना दो श्याम, इस श्याम दीवानी को," – यह पंक्ति दर्शाती है कि भक्त किसी सांसारिक वस्तु की कामना नहीं करता, वह बस अपने श्याम से थोड़ी सी भक्ति माँगता है ताकि उसके भजन गा सके, उसे अपने भाव अर्पित कर सके। यह साधारण माँग नहीं, एक प्रेमी आत्मा की पुकार है, जो चाहती है कि उसका जीवन श्याम के नाम में ही गुज़र जाए।
भजन में मीरा और शबरी जैसे महान भक्तों का उदाहरण देकर यह बताया गया है कि जब उन्होंने सच्चे हृदय से भगवान को पुकारा, तो उन्हें प्रभु की कृपा प्राप्त हुई। वही कृपा, वही भक्ति – इस श्याम दीवानी को भी चाहिए, ताकि वह भी प्रभु को प्रसन्न कर सके।
फिर सबरी के बेर और कर्मा के भात का उल्लेख कर, यह भजन यह भाव जगाता है कि प्रभु को प्रेम और भक्ति चाहिए, भोग नहीं। भक्त कहता है कि मैंने भी अपने मन का माखन लाया है — निश्छल प्रेम रूपी भोग — कृपा करके उसे स्वीकार करें।
अंत में, राधा और रुक्मणी जी के प्रेम का उदाहरण देकर, यह भजन एक बार फिर उस निश्छल अनुराग को पुकारता है। भक्त कहता है कि जैसे तुमने राधा और रुक्मणी से प्रेम किया, वैसे ही थोड़ा प्रेम मुझे भी दे दो ताकि यह जीवन भी तुम्हारे नाम में पूर्ण हो जाए।
यह भजन केवल भावनाओं की अभिव्यक्ति नहीं है, यह एक प्रेममय साधना है – जिसमें भक्ति भी है, समर्पण भी है और प्रभु से प्रेम पाने की मासूम जिद भी। जय प्रकाश वर्मा जी की यह रचना हर उस भक्त के मन को छू जाती है जो अपने श्याम को अपना सर्वस्व मानता है। यह भजन गाते समय मन स्वयं-ब-स्वयं भक्ति में डूब जाता है और आँखों में श्याम का मधुर रूप उभर आता है।
"कुछ दो या ना दो श्याम, इस श्याम दीवानी को..." — यह केवल एक गीत नहीं, एक भक्त का हृदय है, जो श्याम के चरणों में समर्पित है।
आपका बहुत बहुत आभार सर,
ReplyDeleteआप हर भजन के भाव का जो वर्णन करते हैं वो मुझे बहुत ही प्यारा लगता हैं ।।
राधे राधे 🙏🙏❤️❤️
जय प्रकाश वर्मा, इन्दौर
धन्यवाद सर ये तो श्याम की कृपा है
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