माखन मिश्री को हांडा है, makhan mishri ko handa hai chad

माखन मिश्री को हांडा है



माखन मिश्री को हांडा है चढ़ रहे शिखर पे झंडा है,
यहां आदि गौड़ अहि भाषी ब्राह्मण बलदाऊ के पंडा है,
सारे जग कि वो मात् रेवती करती है रखवारी,
मेरे दाऊजी महाराज बिरज में हो गए हैं अवतारी,
मेरे ठाकुर दाऊ दयाल जगत में हो गए हैं अवतारी,

थोड़ी पर हीरा रजत है एक गले में कटला सजत है,
सिर पच चीरा चमक रहयो द्वार पे नौबत बजात है,
श्यामल रंग अंग अति शोभित झांकी अजब तुम्हारी,
मेरे दाऊजी महाराज बिरज में हो गए हैं अवतारी,
मेरे ठाकुर दाऊ दयाल जगत में हो गए हैं अवतारी,

सिर मोर मुकुट लट घुंघराले 40 गज में सजने वाले,
हल धर हल मुसर कर धरे पी रहे भांग के तू प्याले,
कर सिंगर रेवती मैया खड़ी है तेरे अगड़ी,
मेरे दाऊजी महाराज बिरज में हो गए हैं अवतारी,
मेरे ठाकुर दाऊ दयाल जगत में हो गए हैं अवतारी,

लग रही भगते 56 है सज रहे 36 व्यंजन है,
हो गया धन्य जीवन भक्तों मिले तुम्हारे दर्शन है,
नंदकिशोर छवि तेरी अनुपम जाऊं मैं बलिहारी,
मेरे दाऊजी महाराज बिरज में हो गए हैं अवतारी,
मेरे ठाकुर दाऊ दयाल जगत में हो गए हैं अवतारी,

माखन मिश्री को हांडा है चढ़ रहे शिखर पे झंडा है,
यहां आदि गौड़ अहि भाषी ब्राह्मण बलदाऊ के पंडा है,



श्रेणी : कृष्ण भजन



दाऊजी महाराज भजन !माखन मिश्री को हन्डा है।by आचार्य मनोज कृष्ण जी।।

यह भजन "माखन मिश्री को हांडा है" एक अत्यंत भावपूर्ण और उत्सवमयी स्तुति है, जो भगवान बलराम जी, जिन्हें प्रेम से दाऊजी महाराज कहा जाता है, की महिमा का गुणगान करती है। इस भजन में आस्था, श्रद्धा, और ब्रज संस्कृति की झलक मिलती है। इसकी रचना और प्रस्तुति आचार्य मनोज कृष्ण जी द्वारा की गई है, जो अपनी भक्ति और वाणी से श्रोताओं को भक्ति भाव में डुबो देते हैं।

भजन की शुरुआत माखन मिश्री को हांडा है, चढ़ रहे शिखर पे झंडा है जैसी पंक्तियों से होती है, जो यह संकेत देती हैं कि आज ब्रज में कोई विशेष पर्व या उत्सव हो रहा है — और वह उत्सव है, दाऊजी महाराज के अवतरण का। यह भजन बताता है कि बलराम जी का जन्म केवल एक घटना नहीं, बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड के लिए आनंद का पर्व है। ब्रज के कण-कण में, घर-घर में, द्वार-द्वार पर उत्सव मनाया जा रहा है।

भजन में वर्णन है कि बलदाऊ जी का स्वरूप कितना दिव्य और अनुपम है — उनके सिर पर मोर मुकुट है, गले में कटला है, अंग श्यामल और विशाल है। वे हल और मुसल धारण किए हुए हैं, जो उनके कृषक रूप और शक्ति के प्रतीक हैं। रेवती मैया स्वयं उन्हें सिंगार कर रही हैं, और द्वार पर नौबतें बज रही हैं — यह दृश्य उनके वैभव और भव्यता को दर्शाता है।

आख़िरी अंतरे में, यह भी वर्णन किया गया है कि 56 भोग और 36 व्यंजन सजाए जा रहे हैं, जिससे भक्तों का जीवन धन्य हो गया है। दर्शन मात्र से जीवन सफल हो जाता है। भजन में श्रद्धा और समर्पण की भावना इतनी गहराई से व्यक्त की गई है कि श्रोता स्वतः ही दाऊजी महाराज के प्रेम में डूब जाता है।

यह भजन न केवल एक स्तुति है, बल्कि यह एक भक्ति यज्ञ है — जहां संगीत, शब्द, और भाव मिलकर भगवान बलराम जी के चरणों में एक पावन अर्पण प्रस्तुत करते हैं। ब्रज संस्कृति, आचार्य परंपरा और कृष्ण भक्ति की मधुरता से ओतप्रोत यह भजन निश्चय ही मन और आत्मा दोनों को तृप्त कर देता है।

Harshit Jain

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