आजा अब तो लाज बचाने ओ हारे के सहारे
अपनों ने मारा, गैरों से क्या कहें,
तेरे सिवा बाबा, मेरी कौन सुने,
ओ सांवरे, ओ सांवरे, ओ सांवरे, ओ सांवरे...
सुनोगे बाबा तो सुनाएंगे, अपना हाल ए दिल तुम्हें,
ओ सांवरे, ओ सांवरे, ओ सांवरे, ओ सांवरे...
बात मेरे दिल की, तुमसे क्या छिपे बाबा,
तुम जानते सब कुछ हो, हालात मेरे बाबा,
हालत पे मेरी, जब यें लोगो ने, खेले ऐसे दाँव रे,
ओ सांवरे, ओ सांवरे, ओ सांवरे, ओ सांवरे...
ये एक हीं दर हैं वो, जहाँ सबकी सुनाई हों,
तेरे साथ हैं बाबा श्याम, फिर क्यों तन्हाई हों,
यें जीवन तेरा भी सवारेगा, छोड़ेगा ना साथ रे,
ओ सांवरे, ओ सांवरे, ओ सांवरे, ओ सांवरे...
जब साथ ना दे कोई, मेरा श्याम आसरा हैं,
सब कहते हैं इसको, हारे का सहारा हैं,
नैया तेरी भी बचायेगा, थामे जब यें हाथ रे,
ओ सांवरे, ओ सांवरे, ओ सांवरे, ओ सांवरे...
यें हस्ती रहें दुनियाँ, कोई परवाह नहीं,
तेरा साथ मिले मुझकों, चाहूँ मैं इतना हीं,
बाबा चरणों में तेरे अपना, यें मोहित सब कुछ वार दे,
ओ सांवरे, ओ सांवरे, ओ सांवरे, ओ सांवरे...
लेखक व गायक :- मोहित गोयल
श्रेणी : खाटू श्याम भजन
Aaja Laaj Bachane | आजा अब तो लाज बचाने ओ हारे के सहारे | Khatu Shyam Latest Bhajan | Mohit Goyal
आजा अब तो लाज बचाने ओ हारे के सहारे" एक अत्यंत भावुक और आत्मा को छू जाने वाला खाटू श्याम जी का भजन है, जिसे श्री मोहित गोयल जी ने लिखा और स्वरबद्ध किया है। यह भजन उन सभी श्रद्धालु भक्तों की भावना को प्रकट करता है, जो जीवन के संघर्षों में हारकर, पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ अपने इष्ट देवता बाबा श्याम के चरणों में आश्रय लेते हैं।
भजन की प्रत्येक पंक्ति हृदय की गहराइयों से निकली पुकार है — एक ऐसा दर्द जो केवल सांवरे श्याम ही सुन और समझ सकते हैं। इसमें बताया गया है कि जब अपने ही साथ छोड़ दें और पराये घाव दे जाएँ, तब एकमात्र शरण बचती है — खाटू के नाथ की। "तेरे सिवा बाबा मेरी कौन सुने..." जैसी पंक्तियाँ मन को पूरी तरह भक्ति में सराबोर कर देती हैं।
यह भजन सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि उस टूटे हुए मन की विनती है जो हर तरफ से निराश होकर अब बस अपने सांवरे से सहारा चाहता है। भजन में बार-बार आने वाला "ओ सांवरे..." का उच्चारण इतना भावप्रवण है कि श्रोता का मन खुद-ब-खुद बाबा श्याम के चरणों में झुक जाता है।
भजन के माध्यम से यह संदेश मिलता है कि खाटू श्याम जी हारे हुए का सहारा हैं। जब सब साथ छोड़ दें, तब श्याम साथ निभाते हैं। उनका दरबार ही ऐसा है जहाँ कोई खाली नहीं लौटता।
लेखक व गायक: मोहित गोयल जी ने अपनी सुरीली आवाज़ और सच्ची भावना से इस भजन को आत्मा की गहराइयों तक पहुँचाया है।