बोलो भोलेनाथ थारो कुण सो धन लागे
( तर्ज - बाँस की बाँसुरिया पे घणो इतरावे )
बोलो भोलेनाथ थारो कुण सो धन लागे,
मान्ने उज्जैन बुला ले तेरी नगरिया घूमा ले,
मेरे प्यारे बाबा भोले बाबा...
दरबार लगा के बाबा घनो मुसकावे,
जो कोई ना आए की पर हुकुम चलाएं,
मन्ने दास रख ले - 2
बोलो भोलेनाथ थारो कुण सो धन लागे....
नंदी पर बैठ बाबा घनो मुसकावे,
यों तो चाले छम छम यों तो नाचे छम छम,
जरा इसे रोक ले - 2
बोलो भोलेनाथ थारो कुण सो धन लागे....
भक्तों ने देखा बाबा घनो मुसकावे,
लकी तेरे दर आए तुझे भजन सुनाए,
थोड़ी दया कर दे - 2
बोलो भोलेनाथ थारो कुण सो धन लागे....
Lyrics - lucky Shukla
श्रेणी : शिव भजन
बोलो भोलेनाथ थारो कुण सो धन लागे" — यह भजन राजस्थान की लोकधुन और शैली पर आधारित एक अनोखी शिव स्तुति है, जिसे लकी शुक्ला द्वारा लिखा गया है। यह भजन भोलेनाथ के भोलेपन, मुस्कान और उनकी भक्ति में डूबे प्रेमभाव को बेहद मनोरम रूप में प्रस्तुत करता है। इसकी तर्ज "बाँस की बाँसुरिया पे घणो इतरावे..." से ली गई है, जिससे यह और भी आकर्षक और गुनगुनाने योग्य बन जाती है।
भजन की शुरुआत एक सहज और प्यारे प्रश्न से होती है — "भोलेनाथ थारो कुण सो धन लागे?" यानी भोलेनाथ! आपको किस प्रकार का धन अच्छा लगता है? और फिर आगे भक्त कहता है — "मान्ने उज्जैन बुला ले, तेरी नगरिया घूमा ले" — ये पंक्तियाँ सीधे बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन से जुड़ी हुई हैं, जहाँ भक्त बाबा से उन्हें अपने शहर बुलाने की प्रार्थना करता है।
इसके बाद हर अंतरे में भोलेनाथ की मुस्कान, उनके दरबार का सौंदर्य, नंदी पर उनकी सवारी, और भक्तों से उनका सहज-स्नेहिल रिश्ता बखूबी दिखाया गया है। बाबा की एक मुस्कान, एक दृष्टि, और उनका नृत्य भी – सब कुछ भक्तों के लिए दिव्य अनुभव बन जाता है।
इस भजन की विशेषता इसकी बोली, माटी की खुशबू और सीधे दिल से निकले भाव हैं। कहीं भी गूढ़ या भारी शब्द नहीं हैं — हर पंक्ति भोलेनाथ की सादगी और उनके भक्तों की अपार श्रद्धा को दर्शाती है।
यह एक लोकशैली में रचा गया शिव भजन है जो न केवल सावन, महाशिवरात्रि जैसे पर्वों पर गाया जा सकता है, बल्कि किसी भी दिन जब मन भोले के दरबार की ओर खिंच जाए — यह भजन तुरंत जुड़ाव बना देता है।