हद कर दी ओ तेरे काले न घेर लई गलियारा में
हद कर दी ओ तेरे काले न घेर लई गलियारा में,
ऐसी मैया लूट मचाई मटकी मेरी फोड़ बगायी,
लूट लयी दिन धोले में घेर लई गलियारा में,
हद कर दी ओ तेरे काले न घेर लई गलियारा में,
फेर न्यू बोला जान न दूंगा, सारा खोस यो माखन लूंगा,
खा गया माखन सारे न में घेर लई गलियारा में,
हद कर दी ओ तेरे काले न घेर लई गलियारा में,
ऊँगली पकड़ मेरा पोछा पकड़ा सर ते खींच मेरा चुनार गेरा,
शर्म न आयी तेरे काले न घेर लई गलियारा में,
हद कर दी ओ तेरे काले न घेर लई गलियारा में,
घर जाऊ तो मेरी सास लड़ेगी अछि भुंडी मने गाल बाकगी,
मैं पीट दयी ए घरवाले न घेर लई गलियारा में,
हद कर दी ओ तेरे काले न घेर लई गलियारा में,
श्रेणी : कृष्ण भजन
हद कर दी ओ तेरे काले न घेर लई गलियारा में" एक चुलबुला, रोचक और भावनाओं से भरपूर कृष्ण भजन है, जो ब्रज की गोपियों के उस रसमय अनुभव को जीवंत करता है जहाँ कन्हैया की शरारतें और उनकी मासूम सी ठिठोली हर किसी के मन को भा जाती हैं।
इस भजन में गोपी अपनी व्यथा बड़ी ही प्यारी और मजाकिया शैली में कहती है — कि कैसे श्याम ने पूरे मोहल्ले में, सबके सामने, गलियारे में उसे घेर लिया और फिर अपनी बाललीलाओं की सारी सीमाएँ पार कर दीं। "ऐसी मैया लूट मचाई, मटकी मेरी फोड़ बगाई..." जैसी पंक्तियाँ यह दर्शाती हैं कि यह सिर्फ शिकायत नहीं है, बल्कि प्रेम में डूबी शरारती झलक है उस श्याम की जो हर दिल में बसते हैं।
भजन में एक तरफ कृष्ण की नटखट लीला है, तो दूसरी ओर गोपियों की असहायता और उनके भीतर की लाज भी है। "ऊँगली पकड़ मेरा पोछा पकड़ा, सर ते खींच मेरा चुनर गेरा..." — यह दृश्य भक्ति और हास्य दोनों का अद्भुत संगम है।
यह भजन न केवल रसमय है बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी बेहद समृद्ध है। यह ब्रज की उस विरासत को जीवित रखता है जहाँ कृष्ण केवल ईश्वर नहीं, एक चहेता बालसखा, प्रेमी और शरारती बालक भी हैं।
"हद कर दी ओ तेरे काले न घेर लई गलियारा में" — यह पंक्ति उस भाव को प्रकट करती है जहाँ भक्त श्याम की लीलाओं से परेशान होकर भी उनसे जुड़ाव नहीं छोड़ पाता। यह भजन हर उस हृदय को छूता है जो श्याम के प्रेम में भीगा है, और उनके झूठे गुस्से में भी सच्चे प्रेम की झलक देखता है।
🎵 यह भजन जरूर सुनें — यह केवल गाना नहीं, ब्रज की गलियों से आई एक सजीव झांकी है, जिसमें श्याम की छवि हर शब्द में झलकती है।