कृष्णक्रिया षटकम् - (krishan kriyaashtakam)

कृष्णक्रिया षटकम्



बिनिद्र जिवोहं गहन त्रासम्
संसार अनले बिकृष्णक्रिया षटकम्धुर बासम्
अनंतपुरष जगन्निवास
अत्रागच्छ स्वामी अत्रागच्छ || १ ||

एकाकी बिहारं च सर्व क्रिया
एकाकी कर्मो धर्मश्च सकलम्
अनंतपुरष जगन्निवास
अत्रागच्छ स्वामी अत्रागच्छ || २ ||

पचामी पाकोहं यथा सामर्ध्यम्
फल जलेन सह बृंदा नाथ
अनंतपुरष जगन्निवास
अत्रागच्छ स्वामी अत्रागच्छ || ३ ||

करोमि देव ते शय्यारचितम्
आनंद दायनी प्रियासहितम्
अनंतपुरष जगन्निवास
अत्रागच्छ स्वामी अत्रागच्छ || ४ ||

नंदनंदनस्त्वं गोपिकाकांत
भक्तानां प्राणस्त्वं च जगन्नाथ
अनंतपुरष जगन्निवास
अत्रागच्छ स्वामी अत्रागच्छ || ५ ||

त्वया बिना नाथ स्थले मत्स्याहम्
यथा प्राणहीना निर्देहि देहम्
आवाह्वती त्वम् नित्य कृष्णदासः
अत्रागच्छ स्वामी अत्रागच्छ || ६ ||

|| इति श्री कृष्णदासः विरचित कृष्णक्रिया षटकम् सम्पूर्णम् ||



श्रेणी : कृष्ण भजन



Krishna Kriya Shatakam | कृष्ण क्रिया षट्कम् #krishnamantra

कृष्णक्रिया षटकम्’ एक अत्यंत भावमय, आत्मा को छू लेने वाला संस्कृत भजन है, जिसे श्री कृष्णदास जी ने भक्तिभाव से अनुप्राणित होकर रचा है। यह षटकम् (छह श्लोकों की रचना) श्रीकृष्ण को समर्पित एक आर्त पुकार है — एक ऐसा आवाहन जिसमें एक जीव अपने अंतर्मन की वेदना, भक्ति, सेवा और प्रेम से श्रीकृष्ण को अपने हृदय में आमंत्रित करता है।

प्रत्येक श्लोक में भक्त अपनी एक भावनात्मक स्थिति दर्शाता है — जैसे वह संसार की अग्नि में जल रहा है, अकेला है, स्वयं ही पकाता है, श्रीकृष्ण के लिए शैया तैयार करता है, उन्हें गोपिकाओं का प्रिय और भक्तों का प्राणस्वरूप कहकर पुकारता है, और अंत में वह स्वयं को मछली के समान बताता है जो बिना जल के नहीं रह सकती — वैसे ही वह श्रीकृष्ण के बिना नहीं रह सकता।

हर श्लोक "अत्रागच्छ स्वामी अत्रागच्छ" से समाप्त होता है, जिसका अर्थ है: "हे स्वामी! यहाँ पधारो, कृपया यहाँ पधारो!" यह एक भक्त की करुण पुकार है जो श्रीकृष्ण को अपने निकट बुला रहा है, उनकी उपस्थिति की व्याकुल प्रतीक्षा कर रहा है।

यह भजन न केवल भक्त की आत्मा की गहराइयों से निकली पुकार है, बल्कि यह कृष्ण-प्रेम की सघनता और दास्य-भाव का एक सुंदर उदाहरण भी है। इसकी भाषा सरल, परंतु भाव गहरे हैं। यह रचना न केवल पाठ करने योग्य है, बल्कि ध्यानपूर्वक श्रवण और गायन के लिए भी उपयुक्त है, विशेष रूप से भक्ति-संकीर्तन या रात्रिकालीन एकांत साधना में।

‘कृष्णक्रिया षटकम्’ वास्तव में उन दुर्लभ रचनाओं में से है जो शब्दों से अधिक भावों से बोली जाती हैं — जहाँ हर श्लोक से भगवान श्रीकृष्ण को आमंत्रण मिलता है, प्रेम के पुल से, आर्त पुकार से।

Harshit Jain

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