स्वस्तिवाचन - swasti vachan

स्वस्तिवाचन



ॐ श्री गुरवे नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः

आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरितासउद्भिदः।
देवा नो यथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे दिवे॥

देवानां भद्रा सुमतिर्ऋजूयतां देवानां & रातिरभि नो निवर्तताम्।
देवानां & सख्यमुपसेदिमा वयं देवा न आयुः प्रतिरन्तुजीवसे॥

तान्पूर्वया निविदाहूमहे वयं भगं मित्रमदितिं दक्षमस्रिधम्।
अर्यमणं वरुण & सोममश्विना सरस्वती नः सुभगा मयस्करत् ॥

तन्नो वातो मयोभु वातु भेषजं तन्माता पृथिवी तत्पिता द्यौः । तद् ग्रावाणः सोमसुतोमयोभुवस्तदश्विनाशृणुतंधिष्ण्या युवम्॥

तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं धियञ्जिन्वमसे हूसहे वयम्।
पूषा नो यथा वेदसामसद् वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये॥

स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥

पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभं यावानो विदथेषु जग्मयः।
अग्निजिह्वा मनवः सूरचक्षसो विश्वे नो देवा अवसागमन्निह॥

भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।
स्थिरै रङ्गैस्तुष्टुवा & सस्तनूर्भिर्व्यशेमहि देवहितं यदायुः॥

शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम्।
पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः॥

अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः।
विश्वे देवा अदितिः पञ्चजनाःअदितिर्जातमदितिर्जनित्वम्॥

द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष & शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः।
वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व & शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि॥

यतो यतः समीहसे ततो नो अभयं कुरु। शन्नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः॥

ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव
यद् भद्रं तन्न आ सुव॥

ॐ शांतिः, शांतिः, सुशान्तिर्भवतु॥
ॐ श्री सच्चा परमात्मने नमः।।



श्रेणी : स्वस्तिवाचन



सम्पूर्ण स्वस्तिवाचन !! Swastivachan Mantra !! Swasti Patha !! Pt. Saurabh Krishna Shastri

स्वस्तिवाचन — यह वेदों में उल्लिखित एक अत्यंत पवित्र और मंगलकारी मंत्र संग्रह है, जिसे किसी भी धार्मिक अनुष्ठान, यज्ञ, पूजन या शुभ आरंभ से पहले पाठ किया जाता है। इसका उद्देश्य होता है — सर्वत्र कल्याण, सुरक्षा, आयुष्यवृद्धि और शांति की स्थापना।

इस संकलन में ऋग्वेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद से लिए गए विविध मंत्र सम्मिलित हैं, जो देवताओं का आवाहन करते हैं — इन्द्र, पूषा, बृहस्पति, अश्विनीकुमार, मित्र, वरुण, सोम, मरुतगण, सरस्वती आदि। यह सभी शक्तियाँ हमें जीवन में शुभता प्रदान करें, दीर्घायु दें, रोग-दुःख दूर करें और हमारी इंद्रियाँ शुद्ध एवं सत्कर्म में प्रवृत्त हों — यही इन मंत्रों की भावना है।

स्वस्तिवाचन का आरंभ "ॐ श्रीगुरवे नमः, ॐ श्रीगणेशाय नमः" जैसे वंदना मंत्रों से होता है और फिर वैदिक ऋचाओं का संगीतमय, लयबद्ध पाठ किया जाता है। विशेष रूप से इसमें "भद्रं कर्णेभिः" और "शन्तिः शन्तिः शन्तिः" जैसे प्रसिद्ध शांति मंत्र भी सम्मिलित हैं जो मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धता को सुदृढ़ करते हैं।

इस सम्पूर्ण स्वस्तिवाचन स्तुति का सार यही है कि हम सब भद्र विचारों से युक्त हों, शुभ कर्म करें, देवताओं की कृपा हमारे ऊपर बनी रहे, और समस्त दिशाओं से हमें सुरक्षा, सुख और सद्बुद्धि प्राप्त हो।

स्वस्तिवाचन न केवल एक वैदिक परंपरा है, बल्कि भारतीय संस्कृति का मूल स्तम्भ है — जहाँ मनुष्य, देवता, प्रकृति, ब्रह्मांड और आत्मा के बीच सामंजस्य की स्थापना होती है।

👉 यह पाठ विशेषतः यज्ञोपवीत, गृह प्रवेश, विवाह, नामकरण, शांति पाठ आदि संस्कारों में किया जाता है।

🙏 "ॐ शांतिः, शांतिः, शांतिः" — इन तीन बार बोले गए शांति मंत्रों के माध्यम से हम तीनों लोकों (आधिभौतिक, आधिदैविक, और आध्यात्मिक) में पूर्ण समरसता और संतुलन की प्रार्थना करते हैं।

यह ‘स्वस्तिवाचन’ श्री पं. सौरभ कृष्ण शास्त्री जी के माध्यम से प्रस्तुत किया गया एक सम्पूर्ण वैदिक पाठ है, जो श्रद्धा, विश्वास और वैदिक ज्ञान से ओतप्रोत है।

Harshit Jain

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