सावन का महीना घटाएं घनघोर
सावन का महीना, घटाएं घनघोर,
झूला झूले राधा, झुलावे नंदकिशोर,
सावन का महीना, घटाएं घनघोर,
झूला झूले राधा, झुलावे नंदकिशोर,
गूंज उठी हैं चारों, ओर किलकारी,
हस रही हैं राधा, हस रहे हैं मुरारी,
गूंज उठी हैं चारों, ओर किलकारी,
हस रही हैं राधा, हस रहे हैं मुरारी,
ऐसा अद्भुत नजारा, ना देखा कहीं ओर,
झूला झूले राधा, झुलावे नंदकिशोर,
सावन का महीना, घटाएं घनघोर,
झूला झूले राधा, झुलावे नंदकिशोर,
खिल उठी हैं चारों, ओर फुलवारी,
नाच रही हैं राधा, नाच रहे हैं बनवारी,
खिल उठी हैं चारों, ओर फुलवारी,
नाच रही हैं राधा, नाच रहे हैं बनवारी,
नाच रहे हैं संग में, पपिहा और मोर,
झूला झूले राधा, झुलावे नंदकिशोर,
सावन का महीना, घटाएं घनघोर,
झूला झूले राधा, झुलावे नंदकिशोर,
सोने और चांदी का, झूला हैं बनाया,
हीरे और मोती से, झूले को सजाया,
नाच रही हैं सखियां, झूले के चारों ओर,
झूला झूले राधा, झुलावे नंदकिशोर,
सावन का महीना, घटाएं घनघोर,
झूला झूले राधा, झुलावे नंदकिशोर,
Lyrics - Jay Prakash Verma, Indore
श्रेणी : शिव भजन
सावन का महीना, घटाएं घनघोर । झूला झूले राधा, झुलावे नंदकिशोर ।। #radhekrishna #krishna #radhe
सावन का महीना, घटाएं घनघोर" — यह भजन जय प्रकाश वर्मा (इंदौर) द्वारा रचित एक अत्यंत मनोहारी राधा-कृष्ण झूला गीत है, जो सावन के शुभ, रूमानी और भक्तिपूर्ण मौसम को जीवंत करता है। यह रचना उस दिव्य प्रेम, लीलाओं और प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत चित्रण करती है जो श्रीकृष्ण और राधारानी की झूला लीला के साथ जुड़ी हुई है।
भजन की शुरुआत होती है मानसून के वातावरण से — “सावन का महीना, घटाएं घनघोर” — जैसे ही आकाश में काले बादल छाते हैं, चारों ओर हरियाली छा जाती है, वहीं वृंदावन में राधा-कृष्ण के प्रेम का उत्सव आरंभ हो जाता है। झूले पर झूलती राधा और उन्हें झुलाते श्री नंदकिशोर (कृष्ण) — यह दृश्य न केवल भक्तों की कल्पना को रंग देता है, बल्कि हृदय को भावविभोर कर देता है।
भजन में हर अंतरे में प्राकृतिक छटा, संगीत, नृत्य, और आनंद की लहरों का सजीव वर्णन है — कहीं किलकारियाँ, कहीं फुलवारी, कहीं पपीहा और मोर — सब कुछ इस झूला उत्सव में सम्मिलित है। यह केवल एक गीत नहीं, बल्कि संपूर्ण ब्रज का रसमय चित्रण है, जहाँ प्रेम, भक्ति और प्रकृति एक साथ झूमते हैं।
"सोने और चांदी का झूला", "हीरे और मोती से सजावट", और "सखियों का झूमना" — ये सभी दृश्य न केवल भगवान की लीला का अलंकरण हैं, बल्कि भक्तों के मन को सजीव झांकी का अनुभव कराते हैं।
यह रचना शिव भजन श्रेणी में ना होकर विशुद्ध राधा-कृष्ण लीला भजन है, और सावन के झूला उत्सव में इसे गाना अत्यंत शुभ माना जाता है। यह भजन रास-लीला के रसिकों के लिए एक सौगात है — जिसे मंदिरों, झूला महोत्सवों, या किसी भी भजन संध्या में प्रस्तुत किया जा सकता है।
Harshit Ji ,
ReplyDeleteI will be always grateful to your support.
Radhe Radhe ,