अखियां ला बैठी हारा वाले दे नाल
अखियाँ ला बैठी हाराँ वाले दे नाल,
हाराँ वाले दे नाल अड़ीयो, कुंडलाँ वाले दे नाल,
अखियाँ ला बैठी हाराँ वाले दे नाल।
कुंडलाँ वाले ने पाया अनोखा जाल।
जदों दीयाँ शाम नाल लग गईयाँ अखियाँ,
बंसरी वाले ने पाया अनोखा जाल।
अखियाँ ला बैठी हाराँ वाले दे....
फुल्का तवे ते फूल फूल जावे,
चुल्हे ते जल गई दाल।
अखियाँ ला बैठी हाराँ वाले दे....
सस्स वी लड़दी ते सोहरा वी लड़दा,
मैनूं लै चल अपने नाल।
अखियाँ ला बैठी हाराँ वाले दे....
तेरे बिना शाम दिल नहींयों लगदा,
बुरा हो गया रो रो हाल।
अखियाँ ला बैठी हाराँ वाले दे....
अखियाँ दे नाल जद अखियाँ लाइयाँ,
मेरे नैणां हो गए चार।
अखियाँ ला बैठी हाराँ वाले दे....
शाम पीया मेरा बड़ा ही रसीला,
मैं तक तक होवाँ निहाल।
अखियाँ ला बैठी हाराँ वाले दे....
रल मिल सखियाँ वृंदावन गईयाँ,
मैनूं वी लै गईयाँ नाल।
अखियाँ ला बैठी हाराँ वाले दे....
अपलोडर -- अनिलराममूर्ति भोपाल
श्रेणी : कृष्ण भजन
अखियां ला बैठी हारा वाले दे नाल !! #VidyaVijayCHD !! Akhiyan La Baithi Hara Wale De Naal
यह भजन राधा के उस प्रेम और आत्म समर्पण को दर्शाता है जो उन्होंने श्रीकृष्ण — हारों और कुंडलों से सजे, मोहक मुरलीधारी — के प्रति किया है। "अखियाँ ला बैठी हाराँ वाले दे नाल" की पुकार में राधा का वह विरह, प्रेम, और भावनात्मक खिंचाव झलकता है जो उन्हें हर क्षण कृष्ण की ओर खींच लाता है।
जब से राधा की आंखें कृष्ण से मिलीं, तब से उनका मन संसारिक कार्यों में नहीं लगता — रोटी तवे पर फूलती है पर दाल जल जाती है, घर में सास-ससुर नाराज़ हैं, पर राधा का मन तो वृंदावन के उस श्याम के पास है जिसने प्रेम का अनोखा जाल बुन दिया है। वह कहती हैं, “मैनूं लै चल अपने नाल,” यानी अब इस दुनिया में नहीं रहना, मुझे भी अपने साथ ले चलो।
कृष्ण की अनुपस्थिति में राधा की evenings (शामें) सूनी हो गई हैं, और हर दिन आंसुओं में भीगता है। कृष्ण की मुरली और उनका रूप इतना रसीला है कि राधा बस उन्हें निहारती रहती हैं, और उनकी आंखें चार होते ही जीवन धन्य हो जाता है।
यह भजन नारी के रूप में भक्त की वह अवस्था दर्शाता है जब वह अपने आराध्य में इस कदर लीन हो जाती है कि सांसारिक मोह-माया, रिश्ते-नाते सभी गौण लगते हैं। अंत में, राधा की एक ही कामना है — जैसे बाकी सखियां वृंदावन जा रही हैं, वैसे मुझे भी अपने साथ ले चलो, हे कान्हा।